गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja in Hindi

गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja in Hindi

दीवाली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इसके अगले दिन यानि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व समस्त उत्तर भारत में बहुत हर्षोल्लास के साथ के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह मथुरा, वृन्दावन, गोकुल तथा इसके आस-पास के क्षेत्र में मनाया जाता है। इस पर्व में गिरिराज गोवर्धन, गाय तथा अन्नकूट की पूजा की जाती है। अन्नकूट यानि अन्नों के मिश्रण को अर्पित किया जाता है। इस आर्टिकल में हम गोवर्धन पूजा तथा इसके पीछे की अवधारणाओं के बारे मे पढ़ेंगे। साथ ही साथ ही हम तार्किक तथा वैज्ञानिक आधार पर इन अवधारणाओं का विश्लेषण भी करेंगे।

गोवर्धन पूजा 2023 कब है (Govardhan Puja 2023 Date)

इस साल यह पर्व 13 नवम्बर 2023 को सोमवार के दिन मनाया जायेगा। शाम के समय यह पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहर्त

हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन यानि 13 नवम्बर 2023 को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर इसकी शुरूआत होगी। अगले दिन 14 नवम्बर 2023 को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर इसका समापन होगा।

प्रारम्भ होने का समय 13 नवम्बर 2023 को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट
समापन होने का समय 14 नवम्बर 2023 को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट

गोवर्धन पूजा करने की विधि | गोवर्धन पूजा कैसे का जाती है

महिलाएं इस दिन जल्दी उठकर नहाने धोने का काम कर लेती है। इसके बाद वें गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत तथा श्राीकृष्ण की मूर्ति बनाती है। मूर्ति बनने के बाद इसका फूल, वस्त्र, रंग, हल्दी इत्यादि से श्रृंगार किया जाता है। पूजा के समय इसके पास दिये जलाये जाते है। एक ही परिवार के सभी सदस्य मिलकर इस पूजा को करते है। घर में बना हुआ पकवान और भोग ( प्रसाद) भगवान गोवर्धन को चढ़ाया जाता है।

इस त्योहार के साथ ही विश्वकर्मा भगवान की भी पूजा की जाती है। घर के सभी औजारों को पूजा के पास रख दिया जाता है तथा इनकी पूजा की जाती है। उद्योग-कारखानों में भी मशीनों तथा औजारों की पूजा इस दिन की जाती है। घर के सभी सदस्य गिरिराज भगवान की परिक्रमा करते है। परिक्रमा के साथ ही गोवर्धन भगवान के नारे भी लगाये जाते है।

गायों को इस दिन अन्नकूट, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण खुश हो जाते है। इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट का प्रसाद भी बांटा जाता है। देश-भर के मन्दिरों में भंडारे का आयोजन किया जाता है तथा प्रसाद बांटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गिरिराज गोवर्धन भगवान की परिक्रमा करने से भी भगवान श्रीकृष्ण खुश हो जाते है और धन वैभव की प्राप्ति होती है।

गोवर्धन पूजा क्यो की जाती है | गोवर्धन पूजा मनाने के पीछे की अवधारणाएं

इंन्द्र की पूजा की तैयारी

इंद्र को अपने ऊपर बहुत अभिमान हो गया था। वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता था। श्री कृष्ण ने इंद्र के अभिमान को तोड़ने का निर्णय लिया।  उस समय कार्तिक का महीना था और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। ब्रज में इंद्र की पूजा करने की तैयारी हो रही थी। तरह-तरह के अन्नकूट यानि तरह-तरह के अन्नों के मिश्रण बनाये जा रहे थे। कृष्ण के नंद बाबा इस पूजा की देखरेख कर रहे थे।

कृष्ण अपनी माता यशोदा से पूछते हैं कि माता यह सब क्या हो रहा है। माता यशोदा ने उत्तर दिया कि हम इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं। यह पूजा हम इसलिए कर रहे है क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करवाते है। वर्षा के पानी से हमारी फसले होती है। यदि हम पूजा नहीं करेंगे तो इंद्र देवता क्रोधित हो जाएंगे तथा वर्षा नहीं करेंगे। हमारी फसले बिना पानी के सूख जाएगी।

श्री कृष्ण ने कहा कि माता हमें इंद्र की पूजा नहीं करनी चाहिए बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। यह पूजा इसलिए करनी चाहिए क्योंकि हमारी गए वहीं घास करने जाती है। हम ऐसे इंद्र की पूजा क्यों करें जो हमसे अपनी पूजा करवाना चाहता है। वह पूजा न करने पर क्रोधित हो जाता है। हमें ऐसे स्वार्थी देवता की पूजा छोड़ देनी चाहिए।

गोवर्धन की पूजा

श्री कृष्ण के समझाने पर सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए तैयार हो गए। वें सब गोवर्धन पर्वत के पास पहुंच गए। सभी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की।

इंन्द्र ने गुस्सा होने पर की बारिश

अपना मान भंग होने पर इंद्र क्रोधित हो गए। उसने तुरंत बादलों को आदेश दिया कि गोकुल के ऊपर भारी वर्षा करें। उसने अपना वज्र छोड़ दिया। वज्र के कारण गोकुल में मूसलाधार वर्षा होने लगी। ब्रज में बाढ़ आ गई और गोकुल डूबने लगा। सभी गोकुलवासी श्री कृष्ण के ऊपर आरोप लगाने लगे कि सब कुछ उनके कहने से हुआ।

तब श्री कृष्ण ने बांसुरी अपनी कमर के पीछे बांधकर अपने हाथ की छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। सभी ब्रजवासी अपने-अपने गाय तथा बछड़ों के साथ इसके नीचे आ गए। श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को पर्वत के ऊपर लगा दिया ताकि वर्षा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सके। उन्होंने शेषनाग को पर्वत के चारों ओर मेंड बनाने का आदेश दिया।

इंद्र ने माँगी माफी

सात दिन तक लगातार बारिश होती रही लेकिन इन्द्र ब्रजवासियों का कुछ नही बिगाड़ सके। श्री कृष्ण की इस लीला को देखकर उन्हें अब यकीन हो गया कि यह कोई साधारण इंसान नही है। वह ब्रह्मा के पास गए और गोकुल के बारे में पूरा वृतान्त सुनाया। ब्रह्माजी ने हंसकर कहा कि वह कृष्ण साधारण इंसान नही है बल्कि विष्णु के अवतार है। तब इंद्र स्वयं पर बहुत लज्जित हुआ और श्री कृष्ण से माफी मांगी।

तभी से यह पूजा हर साल बड़े हर्षोल्लास के साथ मनायी जा रही है।

गोवर्धन पूजा का तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित विश्लेषण

ईश्वर को मनाने के पीछे उपरोक्त पौराणिक कथा का संदर्भ दिया जाता है। इस घटना को भागवत पुराण से लिया गया है। भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने बढ़े हुए धन का अपव्यय कराने की इच्छा से ब्राह्मणों के द्वारा नंद बाबा से गोवर्धन पूजा करवायी। अपना मान भंग होने पर इंद्र ने क्रोधित होकर ब्रज का विनाश करने के लिए वज्र का प्रयोग करते हुए मूसलाधार जल बरसाना शुरू कर दिया। तब भगवान ने करुणावस खेल-खेल में छाते के समान गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और अत्यंत घबराए हुए ब्रजवासियों तथा उनके पशुओं की रक्षा की।

हम जानते हैं कि प्रकृति के अपने नियम व सिद्धांत होते हैं। यदि हमारी पृथ्वी के ऊपर कोई घटना होती है तो उसके पीछे भी यही नियम व सिद्धांत होते हैं । वर्षा होना एक प्राकृतिक घटना है जो ताप तथा दाब की निश्चित दशाओं पर निर्भर करती है। अतः वर्षा होने की घटना के पीछे किसी  दैवीय शक्ति को जोड़ना गलत है।

पर्वत का बनना भी एक भौगोलिक घटना है। एक पर्वत पृथ्वी के धरातल के ऊपर होता है। यह केवल धरातल के ऊपर ही नहीं  बल्कि धरातल के नीचे भी होता है।  जैसे एक वृक्ष धरतर के ऊपर भी होता है और उसकी जड़ वाला भाग धरातल के नीचे भी होता है। यदि दिव्य शक्ति से उसे उठा भी लिया जाए तो जहां से यह उठेगा वहां पर एक बड़ा गड्ढा बन जाएगा और उसमें पानी भर जाएगा। अतः पर्वत को उठाकर उसे छत का रूप कैसे दिया जा सकता है।

कुछ पर्वत मिट्टी के बने होते हैं और कुछ कठोर चट्टानों के बने होते हैं। मिट्टी के बने पर्वत को उठाना असंभव है। जो  पर्वत कठोर चट्टानों के होते हैं उन्हें एक समान रूप से काटकर छत का रूप देना भी असंभव है। यदि पर्वत को उसके मध्य बिंदु पर आधार लगाकर उठा भी लिया है जाए तो उसके परिधीय भाग को भी आधीर देने की जरूरत पड़ेगी।  नहीं तो अत्यधिक दबाव के कारण उसकी परिधि वाला भाग टूट जाएगा।

अतः इस विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि गोवर्धन पूजा को मनाने के पीछे की कहानी केवल काल्पनिक है। इस घटना का होना पूर्णतया असंभव है। इस त्योहार को मनाने का कोई और दूसरा कारण है जिसे धूर्त धर्म के ठेकेदारों ने छिपा दिया है।

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