चित्रगुप्त पूजा | कलम दवात पूजा

चित्रगुप्त पूजा | कलम दवात पूजा | Chitragupta Puja in hindi

यह पूजा भारत का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन कायस्थ समाज के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व में चित्रगुप्त भगवान तथा कलम दवात की पूजा की जाती है। इस आर्टिकल में हम इस पर्व के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे। मान्यतावादी इतिहास के साथ-साथ इस आर्टिकल में हम चित्रगुप्त पूजा के इस पर्व का तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित विश्लेषण भी करेंगे।

चित्रगुप्त पूजा 2023 तिथि | Chitragupta  Puja 2023 date | चित्रगुप्त पूजा कब मनाई जाती है

इस साल यह पूजा कार्तिक मास की द्वितीया को अर्थात 14 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।

चित्रगुप्त पूजा 2023 का शुभ मुहूर्त

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को इसका –

प्रारंभ होने का समय 14 नवंबर दोपहर 2:26
समाप्त होने का समय 15 नवंबर दोपहर 1: 47

चित्रगुप्त पूजा क्यों मनाई जाती है

भगवान चित्रगुप्त पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों का लेखा-जोखा रखते हैं। वह यमराज के मुंशी है। किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अच्छे तथा बुरे कार्यों के अभिलेख उनके पास संरक्षित रहते हैं। उनके अभिलेखों के आधार पर ही मरने के बाद किसी भी व्यक्ति को नरक या स्वर्ग में डाला जाता है। इसी कारण इस दिन भगवान चंद्रगुप्त की पूजा की जाती है।

चित्रगुप्त पूजा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस  दिन पूजा करने से ज्ञान तथा साक्षरता की प्राप्ति होती है तथा भगवान चित्रगुप्त का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि कायस्थ परिवार के लोग इस दिन चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। इस दिन किताबें, कलम, स्याही के बर्तन की भी पूजा की जाती है। परिवार के सदस्य पूजा के दौरान अपनी लॉग बुक भगवान चित्रगुप्त को देते हैं तथा परिवार के भरण पोषण के लिए आवश्यक धनराशि के साथ साल भर की आय को इसमें दर्ज करते हैं।

गरुड़ पुराण में चित्रगुप्त पूजा के बारे में क्या लिखा है

जैसे कि हम ऊपर बता चुके हैं कि वह कलम और स्याही का देवता होता है। वें यमराज के मुंशी है। वें पृथ्वी पर रह रहे सभी व्यक्तियों के अच्छे-बुरे कार्यों का लेखा-जोखा रखते है। जब कोई जीव मरणोपरांत नरक में जाता है तो उसके साथ कैसा व्यवहार होता है, इसके बारे में गरुड़ पुराण के तीसरे अध्याय में इस प्रकार लिखा है-

जब कोई जीव मरनोपरान्त यमपूरी में जाता है, तो वह वहाँ के दृश्य को देखकर रोने लगता है। उसके रोने की आवाज सुनकर द्वारपाल उसे चित्रगुप्त के पास लेकर जाता है। चित्रगुप्त उसका लेखा-जोखा देखता है और अपने श्रवणों  से भी उस जीवात्मा के बारे में पता करता है। इसके बाद वह धर्मराज को उसके अच्छे-बुरे कर्मो के बारे में बताता है।

श्रवण-श्रवणी

श्रवण ब्रह्मा के पुत्र है। यें स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी पर विचरण करते रहते है। वें दूर से ही सुन व जान लेते है। उनके नेत्र दूरस्थ दृश्य को भी देख लेते है। श्रवणों की पत्नियां श्रवणी कहलाती है। यें भी श्रृवणों की तरह इसी काम में पारंगत रहती है। मनुष्य प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जो भी करते है, उसकी जानकारी वें चित्रगुप्त को देते रहते है। सभी श्रवण-श्रवणी सत्यवादी है। उनके पास मनुष्यों के कर्मों को जानने की शक्तियाँ रहती है। मनुष्यों के व्रत रखने, दान देने तथा सत्य वचन बोलने से वें सब खुश हो जाते है तथा चन्द्रगुप्त से उन्हें मोक्ष दिलाने और स्वर्ग भिजवाने की सिफारिश करते है।

सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, आकाश, जल, भूमि, अग्नि, वायु, दिन, रात तथा संध्यया ये सब मनुष्यों के वृतान्तों को जानते है। घर्मराज, चन्द्रगुप्त तथा श्रवण-श्रवणी सभी मनुष्यों के पाप-पुण्यों को पूर्णतया देेखते रहते है। पापियों के पाप की सुनिश्चतता करने के बाद यमराज उन्हें अपना भयंकर रूप दिखाते है।

यमराज का भंयकर रूप

वें भैसे के ऊपर बैठे हुए है। हाथों मे दण्ड लिए हुए है। बहुत बड़ी काया ( शरीर) वाले है। वें प्रलयकारी बादलों के समान, काजल पर्वत की तरह, बिजली के प्रभाव वाले, तथा बत्तीस भुजाओं वाले है। उनका विस्तार 3 योजन ( लगभग 3*8=24 कि,मी.) में है। उनकी नाक बहुत लम्बी है। आँखे लाल-लाल, भयंकर मुख और दाढ़ी बड़ी-बड़ी है।

चन्द्रगुप्त भी अपना भयंकर रूप बना लेते है। सभी भयंकर रूप वाले दूत पापियों को डराने के लिये गरजते रहते है।  ये सब देखकर दान न करने वाली पापात्मा बार-बार विलाप करती है । धर्मराज उन्हे दण्ड देने की आज्ञा देते है। इसके बाद यम के आज्ञाकारी प्रचण्ड और चण्डक दुत उन्हे एक पाश से बांधकर नरक की ओर ले जाते है।

पापात्माओं को सजा

नरक में अग्नि के प्रभाव वाला एक विशाल वृक्ष होता है जो 5 योजन यानि लगभग 40 कि.मी.  में फैला हुआ है। यह एक योजन यानि लगभग 8 कि.मी. ऊँचा है। वें दूत उन पापात्माओं को इस वृक्ष के साथ  सांकलों से बांधकर पिटाई करते है।  बहुत सी  भूखी तथा प्यासी आत्मांए इस वृक्ष से बंधी रहती है। वें अपने अपराधों को माफ करने की माँग उन दूतों से करती रहती है।

यम के दुत पापी आत्माओं को लोहे की लाठियों, मुदगरों,भालों, बर्छियों, गदाओं तथा मूसलों  से उन्हें जब तक पीटते है, तब तक वें मूर्छित नही हो जाती। मूर्छित होने के बाद दूत उन्हें कहते है कि हे पापात्माओं तुमने दुराचार क्यों किया है? अल्प खाना भी किसी को क्यों नही दिया है? कुत्ते-कव्वे के लिये भी बलि क्यों नही दी है? अतिथियों अर्थात ब्रहामणों को नमस्कार क्यों नही किया है। कभी कोई तीर्थ यात्रा नही की है।  पितरों का तर्पण नही किया है और देवताओं की पूजा नही की है। यमराज और चन्द्रगुप्त का उत्तम ध्यान नही किया है तथा न ही उनके मंत्रों का जाप किया है।

इसके बाद यमदूत उन पापी आत्माओं को निर्दयता के साथ मारते है।  पिटते-पिटते जब वें पापी आत्मायें वृक्ष से नीचे गिरती है तो उसके पत्तों से कटकर घायल हो जाती है। नीचे गिरने पर माँसाहारी कुत्तें उन्हें नोचते है तथा वें पापी आत्मायें रोती है। इनमें से कुछ आत्माओं को आरी से ऐसे काटा जाता है जैसे  लकड़ी को काटा जाता है। कुछ को कुल्हाडी से काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है। कुछ को गड्डें में आधा गाड दिया है तथा बाणों से उनके सिरों को बेध दिया जाता है।  कुछ को उबलते हुए घी तथा तेल की कढ़ाई में डालकर तल दिया जाता है।

इस तरह से पापी आत्माओं को उनके किये की सजा दी जाती है।

तार्किक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधरित विशलेषण

यह त्योहार लोगों द्वारा बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ब्राह्मण धर्म से पूर्व यह त्योहार किसानों का प्रमुख त्योहार था। फसल कटने के बाद नया अन्न उनके घरों में आता था।  इसकी खुशी में  वें 3-4 दिनों तक मौज मस्ती करते थे। मुट्ठी भर पाखंडियों ने इस त्योहार पर कब्जे करने के लिये इसके साथ उपरोक्त कपोल कल्पित कथा जोड़ दी है।  अंग्रेजों तथा मुगलों के समय लिखी गयी गरूड़ पुराण की इस कथा में यम, चन्द्र गुप्त तथा नरक के माध्यम से एक डर का माहौल पैदा किया गया है। इस कथा का उद्येश्य केवल लोगों को डराकर उनसे दान-दक्षिणा लेना, पिण्ड दान करवाना, पूजा तथा अनुष्ठान करवाना है।  ऐसी ही कपोल-कल्लित कथाओं के माध्यम से उन्होंने लोगों को जातियों में बांटकर समाज में उच्च स्थान प्राप्त कर लिया है।  इन्ही त्योहारों के माध्यम से वें समाज में आर्थिक तथा सामाजिक लाभ ले रहे है।

गरूड़ पुराण का लेखक यह भी भूल गया है कि भगवतगीता में यह लिखा है कि आत्मा को न तो मारा जा सकता है, न नष्ट किया जा सकता है,  व जलाया जा सकता है, न काटा जा सकता है और न ही किसी भी माध्यम से प्रताड़ित किया जा सकता है। उपरोक्त कथा के माध्यम से लेखक एक आत्मा को तरह-तरह से प्रताडित करवा रहा है।

अतः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यह त्योहार मौज-मस्ती करने के लिये तथा अन्न रूपी धन के घर में प्रवेश के लिये बनाया गया था। लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने भारतीय त्योहारों पर कब्जा करके भारत की भोली-भाली जनता को लुटने का एक माहौल तैयार किया है। हमे अपने त्योहार मनाने चाहिये लेकिन इन कपोल-कल्पित कथाओं को छोड़कर।

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