पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब की जीवनी | पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब का जीवन परिचय I Biography of Prophet Hazrat Muhammad in Hindi
पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब इस्लाम धर्म के संथापक थे। वें एक धार्मिक, सामाजिक, राजनातिक नेता तथा सामाज सुधारक भी थे। उस समय अरब के लोग कबीलों के रूप में रहते थें। मुहम्मद साहेब भी हाशिम वंश के कुरैशी जनजातीय समूह में रहते थे। उस समूह के नेता उनके दादा अल मुत्तलिब थे। उनका प्रमुख व्यवसाय व्यापार करना था। अरब में उस समय यहूदी बहुसंख्यक थे। यहूदियों ने वहाँ पर अंधविश्वास, पाखंडवाद, असमानता, मूर्तिवाद तथा बहुदेववाद फैला कर रखा था। महिलाओं को भी वें पुरषों से नीचा समझते थे। अरब से उस तरह की परिस्थिति को खत्म करने के लिए मुहम्मद साहेब इस्लाम धर्म लेकर आये।
नाम | अबू अल-कासिम मुहम्मद इब्न हाशिम |
पिता का नाम | अब्दुल्लाह |
दादा का नाम | अल-मुअत्तलिब |
वंश का नाम | हाशिम |
जनजाति का नाम | कुरैश |
माता का नाम | अमीना |
चाचा का नाम | अबू तालिब |
चाची का नाम | फातिमा बिन्त असद |
जन्म तिथि | 570 ई. |
जन्म स्थान | मक्का |
मुख्य पत्नि का नाम | खदीजा |
पत्नियों की कुल संख्या | 13 |
बेटों की संख्या | 3 |
बेटियों की संख्या | 4 |
सबसे छोटी बेटी का नाम | फातिमा |
मृत्यु तिथि | 8 जून, 632 |
मृत्यु का स्थान | मदीना |
आयु | 62 वर्ष |
लड़ाईया | बद्र, खाई,उहुद |
शब्द मुहम्मद का अर्थ
इसका अर्थ होता है- जिसकी अत्यन्त प्रशंसा की गयी हो।
मुहम्मद साहेब का पारिवारिक परिचय
मुहम्मद साहेब का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला था जो इनके जन्म के एक वर्ष पूर्व ही मर गये थे। अब्दुल्ला का अर्थ होता है, ईश्वर का दास। इनकी माता का नाम अमीना था। वें कबीले बानू जहरा के प्रमुख वहाब की बेटी थी। वें सब कुरेश जनजाति तथा हाशिम वंश से सम्बन्धित थे। जब मुहम्मद 6 वर्ष के थे, उनकी माता का देहावसान हो गया था। इनका लालन-पालन इनके दादा अब्न अल मुअलिब ने किया था। कुछ समय बाद इनके दादा की भी मृत्यु हो गयी। इनके दादा इनकी कुरैश जनजाति के नेता थे। दादा की मृत्यु के बाद इनका लालन-पालन इनके चाचा अबु तालिब तथा चाची फातिमा बिन्त असद ने किया।
प्रारम्भिक जीवन परिचय
उस समय मक्का में यह धारणा थी कि मक्का का वातावरण नवजात बच्चों के लालन-पालन के उपयुक्त नही है। वहाँ के व्यक्ति अपने बच्चों को पास के रेगिस्तान की जनजाति के ऐसे परिवारों को दे दिया करते थे जिनकी एक महिला ने उसी समय अपने बच्चों को जन्म दिया हो। इसके बदले में उन्हें कुछ धन मिल जाता था। इस धन से वें अपना गुजारा करते थे। इसी तरह मुहम्मद साहेब को भी इस जनजाति के एक बैड़ोइन परिवार को दे दिया। इस परिवार की हलीमा नाम की महिला ने इनका लालन-पालन किया।
हलीमा ने 6 वर्ष की आयु में इन्हें इनकी माता अमीना को दे दिया। मुहम्मद साहेब ने दो महिने बाद ही बीमारी के कारण अपना माता को खो दिया। इसके कुछ समय बाद ही इन्होंने अपने दादा को भी खो दिया। इनका लालन-पालन इनके चाचा अबु तालिब की देख-रेख मे हुआ। एक व्यापार के सिलसिले में मुहम्मद साहेब अपने चाचा के साथ सीरिया गये थे। उनके व्यापारिक काफिले के सीरिया जाने के दौरान उनकी मुलाकात एक ईसाई पादरी के साथ हुई। पादरी ने उनके चाचा को बताया कि यह बालक बड़ा होकर पैगम्बर बनेगा।
10 से 12 वर्ष की आयु में इन्होने भेड़-बकरी भी चराने का काम किया। वे अपने घर का सारा काम करते थे। झाड़ू लगाना, कपड़े सिलाई करना, जूतें सीलना आदि काम करते थे। अपने चाचा के साथ रहकर उन्होंने व्यापार करना अच्छी तरह से सीख लिया था। वे एक ईमानदार व्यापारी थे। मुहम्मद साहेब के इसी गुण के कारण लोग उन्हे अल-अमीन कहते थे। अल-अमीन का अर्थ जोता है विश्वास के योग्य। उनके इसी गुण के कारण मक्का शहर की एक अमीर महिला व्यापारी, खदीजा ने उन्हे काम पर रख लिया। खदीजा ने उन्हे सीरिया में परिवहन होने वाले अपने समान की देख-रेख का काम दिया।
मुहम्मद का वैवाहिक जीवन
खदीजा उनके काम से बहुत संतुषट थी, क्योकि वें अपना काम बहुत अच्छी तरह से करते थे। खदीजा 40 वर्ष की एक विधवा महिला थी और मुहम्मद यौवनता से भरा हुआ एक सुन्दर लड़का। उनकी यौवनावस्था तथा सुन्दरता के कारण खदीजा उनके ऊपर मोहित हो गयी। जब मुहम्मद 25वर्ष का था, खदीजा ने उनसे प्रभावित होकर उनसे विवाह करने की पेशकश कर दी। मुहम्मद ने हाँ कर दी और दोनों का 595 ई. में विवाह हो गया।
597 ई. में उनकी पहली संतान (लड़की) का जन्म का जन्म हुआ। मुहम्मद का वैवाहिक जीवन बहुत शान्ति के साथ गुजरा। खदीजा से उन्हे दो बेटे तथा चार बेटियां हुई। दोनो बेटों का निधन कम उम्र में हो गया। सबसे छोटी बेटी का नाम फातिमा था। फातिमा का विवाह उनके चचेरे भाई अली से हुई। अली को शिया मुसलमान मुहम्मद का असली उत्तराधिकारी मानते है, क्योंकि अली का मुहम्मद साहेब के साथ रक्त का सम्बन्ध है। 619 ई. में खदीजा की मृत्यु हुई। 25 वर्ष की इस समयावधि में मुहम्मद साहेब ने कोई विवाह नही किया।
खदीजा की मृत्यु के बाद मुहम्मद साहेब ने अपने मक्का प्रवास के दौरान ही 619 ई. में ही दो महिलाओं सौदा और आयशा से विवाह किया। आयशा की विवाह के समय आयु 6 वर्ष थी। लेकिन शादी पूर्ण रूप से 9 वर्ष की आयु में हुई। आयशा प्रथम खलीफा अबु बक्र की लड़की थी। 622 ई. में मुहम्मद साहेब मक्का से मदीना चले गये। मक्का प्रवास के दौरान उन्होंने 10 और महिलाओं से विवाह किये। इनमें से कुछ महिलाए युध्द में मारे गये मुस्लिम सैनिकों की पत्नियां थीं। कुछ पत्नियां अच्छे कुलों और परिवारों से सम्बन्धित थी। सैनिकों की पत्नियों से शादी करने का उद्देश्य उनकों संरक्षण देना था। अच्छे कुलों की महिलाओं से शादी करने का उद्देश्य अपने संगठन को मजबुत करना था।
मुहम्मद साहेब के बच्चें
पुत्र | अल कासिम, इब्राहिम |
पुत्रियां | जैनम, उम्मेकुलसुम, फातिमा जहरा |
पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहेब की पत्नियां
1 | खदीजा बिन्त खुवायद | 495 ई.-619 ई. | यह मुहम्मद साहेब की प्रथम पत्नि थी। इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाली प्रथम महिला भी वही थी। मुहम्मद साहेब की शिक्षा तथा उपदेशों को संग्रहित करने में उनकी अहम भुमिका थी। कुरान की आयत 33: 6 के द्वारा उन्हे मोमिनीन की उपाधि दी गयी । मोमिनीन का अर्थ होता है – विश्वास करने वाली माँ। |
2 | सौदा बिन्ते जमआ | 619 ई.- 632 ई. | सौदा मुहम्मद साहेब की दुसरी पत्नि थी। प्रथम पत्नि की मृत्यु होने के बाद उन्होंने इनसे शादी की थी। इन्हे भी कुरान की आयत 33: 6 के आधार पर मोमिनीन की उपाधि दी गयी। |
3 | आयशा बिन्त अबु बक्र | 614 ई.- 532 ई. | यह इस्लाम धर्म के प्रथम खलीफा अबु बक्र की पुत्री थी। विवाह के समय इनकी उम्र 6 वर्ष थी। आयशा की 9 वर्ष की आयु में विवाह का प्रक्रिया पूरी हुई। इन्हे भी कुरान की आयत 33: 6 के आधार पर मोमिनीन की उपाधि दी गयी। |
4 | हफसा बिन्त उमर | 624 ई. – 632 ई. | हफ्सा इस्लाम धर्म के द्वितीय खलीफा उमर की पुत्री तथा इनकी चौथी पत्नि थी। कुरान की आयत 33: 6 के आधार पर इसे भी मोमिनीन की उपाधि दी गयी। |
5 | जैनब बिन्त खुजैमा | 624ई. – 627 ई. | जैनब मुहम्मद की पाँचवीं पत्नि थी। शादी के तीन साल बाद ही इनकी मृत्यु हो गयी थी। |
6 | हिन्द अम्मे सलमा | 629 ई. – 632 ई. | हिन्द मुहम्मद की छठी पत्नि थी। उम्मे सलमा का अर्थ होता है, सलमा का माँ। मुहम्मद साहेब की शिक्षाओं तथा उपदेशों को संग्रहित करने में इनका भी महत्वपूर्ण स्धान था। |
7 | जैनब बिन्त जहश | 627 ई. – 632 ई. | यह मुहम्मद की सातवीं पत्नि तथा उनकी चचेरी बहन थी। पहले जैनब की शादी मुहम्मद के दत्तक पुत्र जैद बिन हारिसा के साथ हुई थी। जैद मुहम्मद की प्रथम पत्नि खदीजा का गुलाम था। जैद को मुहम्मद ने अपने दत्तक पुत्र के रूप में अपना लिया था। बाद में उन्होंने जैनब के साथ विवाह कर लिया था तथा जैद का त्याग कर दिया था। |
8 | जुवेरिया बिन्त अल-हारिस | 628 ई. – 632 ई. | जुवेरिया बमू-मुस्तलिक के प्रमुख अल-हारिस की पुत्री थी। |
9 | उम्मे हबीबा श्मला | 629 ई. – 632 ई. | – |
10 | रेहाना बिन्त जैद | 629 ई. – 631 ई. | ये बनू नजीर जनजाति की यहूदि महिला थी। |
11 | सफिय्या बिन्ते हुयेय | 629 ई. – 632 ई. | यह भी बनू नजीर जनजाति की महिला थी। मुहम्मद की मृत्यु के बाद मुस्लिम समुदाय की सत्ता की राजनीति में शामिल हुई और मृत्यु होने तक रही। |
12 | मैमूना बिन्ते अल हारिज | 630 ई. – 632 ई. | – |
13 | मारिया अल किबतिया | 630 ई. -632 ई. | मारिया तथा इसकी बहन मिस्र के गवर्नर की गुलाम थी। जिन्हें उन्होंने उपहार स्वरूप मुहम्मद के पास भेजा था। मारिया के साथ मुहम्मद ने शादी कर ली थी। शादी के साथ ही इनका धर्म परिवर्तित करके इस्लाम धर्म कर दिया था। |
धार्मिक और राजनीतिक जीवन
अंधविश्वास और पाखंड
उस समय अरब में अंधविश्वास और पाखंड फैला हुआ था। लोग मूर्तिवाद और बहुदेववाद में विश्वास करते थे। मक्का में काबा उनका प्रमुख तीर्थस्थल था। काबा में 300 से अधिक देवता तथा उनकी मूर्तिया थी। लोग कबीलों में बँटे हुए थे। सभी कबीलों के अलग-अलग देवता होते थे।
एक विशेष दिन काबा में सभी अरबवासी अपने-अपने देवतओं की पूजा करने आते थे। वें अपने-अपने देवों को खुश करने के लिए जानवरों की बलि चढ़ाते थे। मुहम्मद साहेब के दादा खुद अपने बेटे यानि मुहम्मद साहेब के पिता की बलि चढ़ाना चाहते थे। लेकिन वे ऐसा करने में सफल नही हुए। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे रहते थे। कुछ अमीर लोग इस धार्मिक पाखंड का आर्थिक और सामाजिक लाभ ले रहे थे।
मुहम्मद साहेब की चिन्तनशील प्रकृति और ज्ञान प्राप्ति
मुहम्मद साहेब एक चिन्तनशील प्रकृति के थे। वे अपने समय की पारिस्थिति को देखकर बहुत दुखी थे। वे हमेशा चिन्तन में रहते थे। मक्का के आस-पास एक प्रकाश पर्वत था। इस पर्वत के ऊपर हीरा नाम की गुफा थी। समाज की पारिस्थिति से व्याकुल होकर मुहम्मद इसी गुफा में आकर आत्म-चिन्तन करते थे। वे अपने समाज में जगह-जगह घूमते थे और सामाजिक बुराईयों को दुर करने के बारे में सोचते रहते थे।
610 ई.में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उनका ज्ञान उनके आत्मचिन्तन का परिणाम था। लेकिन लोगों से अपनी बात मनवाने के लिए मुहम्मद साहेब ने देवदूत का सहारा लिया। इस्लामिक मान्यता के अनुसार एक जिब्राइल उनके सामने प्रकट हुआ। जिब्राइल ने उन्हे अल्लाह के रहस्य के बारे में बताया।
मुहम्मद साहेब के द्वारा अल्लाह के संदेश का प्रसार और प्रचार
प्रारम्भ में मुहम्मद साहेब ने व्यक्तिगत रूप से प्रचार किया। बाद में इपनी बीबी फातिमा और चाचा अबु तालिब के कहने पर अल्लाह के रहस्यों का सार्वजनिक रूप से प्रचार करना शुरू कर दिया। उस समय अरब में बहुत अन्धविश्वास और पाखंड फैला हुआ था। बहुदेववाद तथा मूर्तिवाद प्रथा अपने चरम पर थी। पैगम्बर इब्राहिम द्वारा स्थापित किये पवित्र तीर्थ स्थल काबा में 300 के करीब देव तथा उनकी मूर्तियां थी।
उस समय के समाज में लोग कबीलों के रूप में रहते थे। सभी कबीलों के अपने-अपने इष्ट देव थे। सभी के कुल देवता भी अलग-अलग थे। समाज में बहुत असमानता व्याप्त थी। पुरुष लोग स्त्रियों को हीन भावना से देखते थे। इसी व्यवस्था का कुछ कुलीन लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से फायदा उठा रहे थे।
मुहम्मद ने सभी देवताओं को नकारना शुरू कर दिया। उन्होंने अल्लाह के संदेश का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने अल्लाह के इस रहस्योद्घाटन का प्रचार किया कि अल्लाह एक और केवल एक है और मोहम्मद उनका पैगंबर है। अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण ही उनकी सेवा है। बहुदेववादी लोग उनके इस प्रचार का विरोध करने लगे और उनके दुश्मन बन गए। मुहम्मद और उनके अनुयायियों की संख्या बहुत कम थी। वे गुप्त रूप से मुहम्मद साहेब की शिक्षाओं को सुनते थे।
जब विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई तो मुहम्मद साहेब को अपनी जान का खतरा उत्पन्न हो गया। उनके कबीले ने उनको सुरक्षा दी। चाचा अबू तालिब के रहते मुहम्मद का कोई भी बाल बाका न कर सके।
619 ईस्वी में उनकी पत्नि खदीजा तथा चाचा अबू तालिब का निधन हो गया। क्योंकि उनके चाचा अबू तालिब उनके कबीले के प्रमुख नेता हुआ करते थे। उनके चाचा अबु तालिब की मृत्यु के बाद में उनके दूसरे चाचा उनके कबीले के नेता बने। उन्होंने मुहम्मद साहेबको संरक्षण देने से मना कर दिया।
616 ईस्वी में मुहम्मद के हासिम वंश को प्रतिबंधित कर दिया था। मक्का के अमीर कुलों ने उनके कुल को बहिष्कृत कर दिया था। उन्होंने इनके कुल के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने तथा व्यापार करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। 1919 में अबू तालिब के निधन के बाद हाशिम वंश का नेता चेंज होने के बाद यह प्रतिबंध हटा लिया गया।
हिजरत और हिजरी संवत
हाशिम वंश के द्वारा मुहम्मद साहेब की सुरक्षा वापस लेने के बाद उनके ऊपर संकट के बादल मंडलाने लगे। उनके विरोधी उनके पीछे बुरी तरह से पड़ गयें। तब उन्होंने मदीना जाना उचित समझा। मक्का से मदीना की 622 ई. की उनकी इस यात्रा को हिजरत के नाम से जाना जाता है। इस यात्रा के समय से एक नया संवत शुरू हुआ जिसे हिजरी संवत के नाम से जाना जाता है।
मदीना में निवास
मदीना में आने के बाद मुहम्मद साहेब को अपनी कुरैशी जनजाति के लोगों का समर्थन मिला। यहां पर बडी संख्या में उनके अनुयायी हो गये। उन्होंने यहीं पर अपना घर बनाया। घर के अंदर बड़ा हाल बनाया ताकि काफी लोग प्रार्थना कर सके। मुहम्मद के अनुयायियों को मुसलमान नाम दिया गया। उन्होंने 10000 लोगों की एक सेना बनाई तथा मदीना में अपने विरोधियों को समाप्त करने का अभियान चलाया।
विरोधियों को समाप्त करने का अभियान
मदीना में उस समय तीन यहूदी जनजाति रहती थी। एक यहूदी जनजाति उनके समर्थन में आ गई। एक को मदीना से निर्वासित कर दिया गया तथा एक बची हुई जनजाति के सभी पुरुषों को मार दिया तथा औरतों और बच्चों को गुलाम बना लिया। इसीलिये मदीना पूर्ण रूप से मुहम्मद के नियंत्रण में आ गया।
624 ई. में मुसलमान तथा मक्कावासियों के बीच बद्र नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुसलमानों की एक आश्चर्यजनक जीत हुई। 625 ई. में उउद नामक स्थान पर युद्ध हुआ। मक्कावासियों का यह प्रयास असफल हुआ। 627 ईस्वी में खाई का युद्ध हुआ। इसमे भी मक्कावासी परास्त हुये। इस प्रकार मुहम्मद को पदच्युत करने के मक्कावासियों के सभी प्रयास असफल हो गए।
624 ई. में मुसलमानों ने मक्का के व्यापारिक केन्द्र पर छापा मारा था और ज्यादातर व्यापारियों को कैद कर लिया गया था। इसका बदला लेने के लिए मक्का की सेना ने बद्र में प्रस्थान किया था। दोनों सेना के बीच हुए युद्ध में मक्का की बुरी तरह हार हुई।
बद्र में हुई हार का बदला लेने के लिए मक्कावासी 625 ई. में उउद में इक्टठा हुए। दोनों के बीच युद्ध हुआ। शुरुआत में मुसलमानों की जीत हो रही थी। मक्कावासियों ने कूटनीति का प्रयोग करके मुसलमानों को बुरी तरह हरा दिया।
627 ईस्वी में खाई के युद्ध में मुसलमान ने मक्कावासियों को हरा दिया।
628 ईस्वी में मुसलमानों ने पवित्र मक्का के तीर्थ स्थल पर जाने का दृढ़ संकल्प लिया। मक्कावासी मक्का में उनकी घुसपैठ को रोकने के लिए प्रतिबद्ध थे। मुहम्मद ने मक्का के एक किनारे पर हुदैबियाद में डेरा डाल दिया। कुछ समय अंतराल के बाद दोनों के बीच एक संधि हुई। इस संधि के अनुसार मुसलमानों को 10 वर्ष के लिए मक्का में तीर्थ यात्रा पर जाने की अनुमति मिल गई।
629 ईस्वी में मुसलमानों ने खैबर के यहूदियों की घेराबंदी की। इसके बाद दोनों के बीच संधि हो गई। इस संधि के अनुसार यहूदियों को अपनी फसल खजूर का आधा भाग मदीना भेजना था।
629 ईस्वी में जब मुसलमान तीर्थ यात्रा पर गए तो उनके ऊपर हमला हो गया। इस हमले की निंदा की गई तथा इसे संधि का उल्लंघन माना गया। 630 ईस्वी में 1000 व्यक्तियों की सेना के साथ मुहम्मद ने मक्का पर हमला किया। थोड़े कुछ विरोध के बाद मुहम्मद का मक्का पर कब्जा हो गया। 630 ई. उन्होंने सीरियाई बॉर्डर पर हमला किया और ताबुक तक पहुंच गए।
मुहम्म्द साहेब का निधन
8 जून 632 ईस्वी में जब वे मक्का से मदीना वापस लौटे तो उन्हें बुखार हो गया। इसी बुखार के चलते उनका निधन हो गया।
पैगंबर मुहम्मद साहेब की शिक्षाएं
- अल्लाह केवल एक है। लोगों को एकेश्वर में विश्वास करना चाहिए।
- अल्लाह सर्व शक्तिशाली, सर्वज्ञ और करुणा से भरा हुआ है।
- सभी व्यक्ति अल्लाह की संतान है।
- सभी मुसलमान सगे भाई है। पैगंबर मुहम्मद के इस उपदेश से मुसलमानों के बीच एकता और समानता की भावना स्थापित होती है
- अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखो।
- क्षमाशीलता की प्रवृत्ति रखना।
- सेवा की भावना रखना।
- ईमानदारी की प्रवृत्ति रखना।
- निर्धनों की सेवा करना।
- जगात जो एक धार्मिक कर है देना। यह जनकल्याण हेतु दिया जाता है।
- प्रतिशोध न लेना।
मोहम्मद से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं
- 569 ई. – पिता अब्दुल्ला की मृत्यु
- 570 ई. – मोहम्मद का जन्म
- 576 ई. – माता की मृत्यु
- 583 ई. – मोहम्मद की सीरिया की यात्रा
- 595 ई. – खदीजा विधवा से शादी
- 597 ई. – प्रथम पुत्री का जन्म
- 610 ई. – प्रकाश पर्वत की हीरा गुफा में मोहम्मद को ज्ञान की प्राप्ति जिब्राइल के माध्यम से प्राप्त हुई।
- 610 से 612 ई. – भेड़ बकरी चराने का काम किया
- 610 ई. – मोहम्मद द्वारा अपने अनुयायियों को गुप्त रूप से शिक्षा देना
- 613 ई. – सार्वजनिक रूप से उपदेश देने की शुरुआत
- 614 ई. – मक्कावासियों द्वारा प्रबल विरोध की शुरुआत
- 615 ई. – मुसलमानों का इथोपियां में प्रस्थान
- 616 ई.- हाशिम वंश का कुलीन वंशों द्वारा बहिष्कार
- 619 ई. – खदीजा पत्नी तथा अबू तालिब चाचा का निधन
- 619 ई. – हाशिम वंश द्वारा मोहम्मद को दी गई सुरक्षा वापस लेना
- 619 ई.- कुलीन वंशों द्वारा हाशिम वंश पर लगाया गया प्रतिबंध वापस लेना
- 622 ई. – मोहम्मद और उनके अनुयायियों की मक्का से मदीना की यात्रा और मदीना में प्रवास
- 624 ई.- बद्र का युद्ध
- 625 ई. – उउद का युद्ध
- 627 ई. – खाई का युद्ध
- 628 ई. – हुदैबियाद की संधि
- 629 ई. – तीर्थ यात्रा के दौरान मक्का में मुसलमानों पर हमला
- 630 ई. – मोहम्मद के नेतृत्व में मक्का सैन्य अभियान और मक्का पर हमला तथा कब्जा
- 632 ई.- मोहम्मद की मदीना में बुखार के कारण मृत्यु
निष्कर्ष
मोहम्मद साहेब एक समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए एक नया धर्म स्थापित करने का फैसला लिया। वे चिंतनशील प्रकृति के थे। वे हीरा नाम की गुफा में जाकर आत्म चिंतन किया करते थे। इसी जगह पर उन्होंने समाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए नियम बनायें, लेकिन उन्होंने इन नियमों का प्रचार व प्रसार प्रत्यक्ष रूप से न करके ईश्वर और देवदूत जिब्राइल का सहारा लिया। अपने धर्म का प्रचार एवं प्रचार करने के लिए उनहोंने हिंसा का सहारा लिया और तलवार का डर दिखाकर इस्लाम धर्म को फैलाया।
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