सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose ki Jivani | Subhash Chandra Bose Biography in Hindi | Essay on Subhash Chandra Bose | Subhash Chandra Bose in Hindi | सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी
सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनमे राष्ट के प्रति अतुल प्रेम था। बचपन से ही उनमें राष्टप्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को अपने राष्ट को समर्पित कर दिया। वें महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति से संतूष्ट नही थे इसलिए उन्होने महात्मा गाँधी का रास्ता छोडकर अपना अलग हिंसावादी रास्ता अपनाया।
उनके आन्दोलन से परेशान होकर अंग्रजों ने उन्हे उनके ही घर में नजरबन्द करके रख दिया, लेकिन वें बडी चालाकी से अपने घर से निकलकर पेशावर पहुँच गये। पेशावर से काबुल के रास्ते जर्मनी और जर्मनी से जापान। वहीं उन्होंने आजाद हिन्द फौज की स्थापना, इंडियन नेशनल आर्मी का पुनर्गठन किया तथा आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की।
भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त करने के लिए उन्होंने जापान का समर्थन हासिल किया। अमेरिका द्वारा जापान के नासासाकी तथा हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने के कारण जापान ने अमेरिका के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत की मदद करने से मना कर दिया। इस तरह से सुभाष चन्द्र बोस अपना सपना पूरा नही कर पाये।
सुभाष चन्द्र बोस का संक्षिप्त जीवन परिचय
पूरा नाम | सुभाष चन्द्र बोस |
जन्म तिथि | 23 जनवरी 1897 |
जन्म स्थान | कटक, ओडिशा |
पिता का नाम | जानकी नाथ बोस |
माता का नाम | प्रभावती |
बड़े भाई का नाम | शरद चन्द बोस |
पत्नि का नाम | एमिली शेंकल |
बेटी का नाम | अनिता बोस |
गुरू का नाम | चितरंजन दास |
मृत्यु | 18 अगस्त 1945 |
पारिवारिक परिचय
सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में 23 जनवरी 1897 ई. में हुआ था। उनका परिवार एक बंगाली परिवार था जिसके मुखिया का नाम जानकी नाथ बोस था। जानकी जी कटक के एक प्रसिध्द वकील थे। शुरू में वें एक सरकारी वकील थे लकिन बाद मे निजि प्रेक्टिज करने लगे थे। अंग्रेजों ने इन्हे रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था। जानकीनाथ की 14 संताने थी जिनमें 6 बेटी तथा 8 बेटे थें। सुभाषचन्द्र अपने माता-पिता का 9वीं संतान थी। जानकी जी ने कटक की महापालिका में भी लम्बे समय तक काम किया था। वे बंगाल की विधान सभा के भी सदस्य रहे।
उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था। प्रभावती के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। इनका परिवार कलकत्ता का एक कायस्थ कुलीन परिवार था। सुभाष के बडे भाई का नाम शरदचन्द्र बोस था। इन्हे सुभाष बहुत पसंद थे। सुभाष ने देश-प्रेम इनसे ही साखा था। शरदचन्द्र अपने मात-पिता के दूसरे पुत्र थे।
सुभाष की पत्नि का नाम एमिली शेंकल था। एमिली से इनकी शादी आस्ट्रेलिया में हुई थी। एमिली ने 29 नवम्बर 1942 के दिन एक पुत्री को जन्म दिया। इनकी पुत्री का नाम अनीता बोस था।
शैक्षिक जानकारी
सुभाष चन्द्र बोस की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टैण्ट यूरोपीय स्कूल से हुई। इसके बाद इन्होंने 1909 में कटक के रेवेंशा कोलिजिएट स्कूल मे प्रवेश लिया। इस स्कूल के प्रधानाचार्य बेनीमाधव दास ने सुभाष को बहुत प्रभावित किया। 1915 में इन्होने इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। यद्यपि वे बीमार थे फिर भी इन्होने यह परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास की।
1916 में इन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में BA में प्रवेश लिया। BA में उनका विषय दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) था। इस कॉलेज मे अध्यापकों के भारतीय छात्रों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार के चलते आध्यापकों तथा भारतीय छात्रों के बीच झगड़ा हो गया। भारतीय छात्रों का नेतृव्य सुभाषचन्द्र बोस ने किया था। इसी नेतृव्य के चलते इन्हें एक साल के लिए कॉलेज से निष्कासित कर दिया तथा इसके साथ ही उन पर परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
सुभाष को सेना में भर्ती होने का बहुत शोंक था। उन्होंने 49 वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने के लिए परीक्षा भी दी थी परन्तु उन्हे आँखों में फिट न होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया। इसका बाद उन्होंने चर्च के स्टॉटिश कॉलेज में प्रवेश लिया। यही से उन्होने दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में BA की परीक्षा प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण की। इस परीक्षा में कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका द्वितीय स्थान था।
ICS की परीक्षा
सुभाष चन्द्र बोस के पिता की इच्छा थी कि वह ICS की परीक्षा उत्तीर्ण करे। यद्यपि उनकी इस परीक्षा में कोई रूचि नही थी फिर भी अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए वे 15 सितम्बर 1919 मे इंगलैंड़ चले गये। 1920 में उन्होंने इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया और उनकी इस परीक्षा में चौथी रेंक आयी। अंग्रेजी में उनके सबसे ज्यादा अंक आये।
परन्तु उनके अन्दर तो बचपन से ही देश-प्रेम की भावना भरी हुई थी तो ICS की नौकरी में कैसे अंग्रेजों की गुलामी करते। अत: उन्होंने इस नौकरी को छोड़ दिया। 22 अप्रेल 1920 को भारतीय सचिव को अपना इस्तीफा सौंप दिया। उनकी माता ने उनके इस फैसले का समर्थन किया और कहा कि सुभाष के पिता, परिवार तथा अन्य लोग कुछ भी कहे, उन्हें अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है।
सुभाष चन्द्र बोस का राजनीतिक परिचय
इंगलैंड से वापस आकर वे अपने बडे भाई शरदचन्द्र बोस से मिले। शरदचन्द्र ने उन्हें रविन्द्रनाथ टैगोर से मिलने को कहा। वे रविन्द्रनाथ टैगोर से मिले जिन्होनें इनसे कहा कि यदि तुम अपने जीवन मे कुछ करना चाहते हो तो महात्मा गाँधी से जाकर के मिलो। सुभाष ने रविन्द्र नाथ टैगोर से कहा कि मैं तो चितरंजन दास को पसंद करता हूँ लेकिन आप कहते हो तो मैं महात्मा गाँधी से अवश्य मिलूंगा।
महात्मा गाँधी से मुलाकात
उस समय सुभाष चितरंजन दास से बहुत प्रभावित थे। वे उन्हे अपना गुरू मानते थे। महात्मा गाँधी से मिलने से पहले वे अपने गुरू से मिलने गये जिन्होंने भी उन्हे महात्मा गाँधी से मिलने की सलाह दी। इसके बाद वे मुम्बई गये और महात्मा गाँधी से मिले। 20 जुलाई 1921 को गाँधी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई।
असहयोग आन्दोलन
इस समय महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन चला रखा था। उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को चितरंजन के पास जाने और असहयोग आन्दोलन का नेतृव्य करने में उनकी मद्द करने के लिया कहा। उस समय चितरंजन दास बंगाल में असहयोग आन्दोलन का नेतृव्य कर रह थे। पहले ही तय हुआ था कि छात्र अपने स्कूल-कॉलेज छोड देंगे, शराब बन्दी की जायेगी, विदेशी वस्तुओं का विरोध किया जायेगा और विधान मण्डल का विरोध किया जायेगा। यदि इस आन्दोलन में हिंसा होती है तो इस आन्दोलन को उसी समय बन्द कर जायेगा।
लाला लाजपत राय ने कहा कि छात्र-छात्रओं के स्कूल-कॉलेज को छुडवाकर हम कोई आन्दोलन नही जीत पायेंगे। तब महात्मा गाँधी ने कहा कि हम अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बन्द कराकर हिन्दी माध्यम के स्कूल खुलवायेंगे। बच्चों को उनकी स्थानीय भाषा मे शिक्षा दी जायेगी। इस आन्दोंलन के तहत मौहम्मद-एंग्लो विश्वविद्यालय का नाम बदलकर अलीगढ़ मुस्लिम कर दिया गया। जामिया मिलिया इस्लामिया स्कूल खोले गये। काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ आदि संस्थान खोले गये।
चौरा-चौरी कांड
5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के चौरा-चौरी नामक स्थान पर हिंसा हो गयी। इसका पता जब महात्मा गांधी को पता चला तो उन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सुभाष चन्द्र बोस को यह बहुत खराब लगा क्योंकि जब आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था उसी समय इसे वापस ले लिया। मोती लाल नेहरू ने भी कहा कि अगर जुम्मू कश्मीर मे हिंसा होगी तो क्या कन्याकुमारी को इसी सजा मिलेगी।
स्वराज पार्टी
इसके बाद 1922 मे मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास तथा सुभाषचन्द्र बोस ने मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की। चितरंजन दास को इसका अध्यक्ष बनाया गया। इस पार्टी ने प्रथम बार विधान परिषद का चुनाव लड़ा और 101 सीट से 44 सीटे जीती। प्रथम बार किसी भारतीय बिट्ठलभाई पटेल को विधान परिषद में जाने का मौका मिला। इसी समय पार्टी ने महापालिका का चुनाव जीता और दास बाबू कोलकाता के महापौर (मेयर) बन गये। उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को महापालिका का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया।
सुभाष चन्द्र बोस की गिरफ्तारी
असहयोग आन्दोलन के समय 1921 मे सुभाष चन्द्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। वें 6 महिनों तक जेल में रहे। वें अपने जीवनकाल मे 11 बार गिरफ्तार हुए। 1926 ई. मे गोपीनाथ नाम का एक क्रान्तिकारी एक पुलिस अधिकारी चार्ल्स टंगार्स को मारना चाहता था। उसने गलती से एक व्यापारी को मार दिया। पुलिस ने उसको पकड़ लिया और फाँसी दे दी। पुलिस ने शक के आधार पर सुभाष चन्द्र बोस को भी गिरफ्तार कर लिया।
5 नवम्बर 1925 ई. मे चितरंजन दास की मृत्यु हो गयी। इसकी खबर सुभाष को जेल मे रेडियो के माध्यम से मिली। इस दुखद घटना के बाद भी पुलिस ने उन्हे जेल से रिहा नही किया। जेल में ही सुभाष चन्द्र बोस की तबियत खराब हो गयी। उन्हे तपेदिक हो गया। चितरंजन दास की मृत्यु के बाद स्वराज पार्टी को समाप्त कर दिया गया।1927 ई. मे सुभाष चन्द्र बोस को पुलिस के द्वारा रिहा कर दिया। इस समय तक वें एक युवा नेता के रूप में स्थापित हो गये थे। वें कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे । लेकिन इसमे दक्षिणपंथियों का दबदबा था और वें एक वामपंथी थे।
साइमन कमीशन
1928 ई. में साइमन कमीशन भारत आया जिसका उद्येश्य गरीब, शोषित तथा अछूत वर्गो को उनका हक तथा अधिकार दिलाने के लिये एक रिपोर्ट तैयार करना था। कांग्रेस के अन्दर ज्यादातर शोषक वर्गों के व्यक्ति थे जो उपरोक्त वर्गों को उनका अधिकार देने के पक्ष मे नही थे। इसके साथ ही कांग्रेस चाहती थी कि इस कमीशन में कुछ भारतीय भी शामिल हो। कांग्रेस की माँग को कमीशन ने ठुकरा दिया।
कांग्रेस ने इस कमीशन का विरोध करने के लिए 8 सदस्यों की एक कमेटि बनायी। मोतीलाल नेहरू इसके अध्यक्ष बने। कांग्रेस ने इसका विरोध किया और काले झंडे दिखाए। आयोग ने कांग्रेस को चुनौती दी कि ऐसी रिपोर्ट हमे बनाकर दो जिसकर कोई विरोध न हो। 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे कोलकाता मे कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमे महात्मा गाँधी ने उपनिवेशिक स्वराज ( डॉमिनियन स्टेट ) की सरकार से माँग की।
पूर्ण स्वराज्य की माँग
इस रिपोर्ट का सुभाषचन्द्र बोस तथा जवाहरलाल नेहरू ने जबरदस्त विरोध किया । अपनी अध्यक्षता में लाहौर अधिवेशन में 5 जनवरी 1929 को पूर्ण स्वराज्य की माँग का प्रस्ताव रखा जिसे 26 जनवरी 1929 को पास कर दिया। यही कारण है कि इस दिन स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। 1929 ई. सुभाष चन्द्र बोस को अखिल भारतीय व्यापार संघ का अध्यक्ष बनाया गया।
सुभाष चन्द्र बोस का मेयर बनना
इसी दिन 26 जनवरी 1930 ई. को पंजाब में रावी नदी के किनारे भारतीय झंड़ा फहराया तथा स्वराज्य की माँग की। इसी माँग के दौरान 1930 ई. मे इन्हे फिर से गिरफ्तार किया गया। जेल मे रहते हुए उन्होंने कोलकाता मेयर का चुनाव जीत लिया। मेयर बनने के बाद पुलिस ने इन्हे रिहा कर दिया। इस दौरान सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी कार्य शैली से सबको चौका दिया। उन्होंने कोलकाता शहर के सभी मार्गो के अंग्रेजी नामों को बदलकर भारतीय नाम कर दिया । सभी स्वतंन्त्रता सेनानियों को महापालिका में नौंकरी दी। जिससे नाराज होकर अंग्रेजों ने उन्हे 1932 ई. मे गिरफ्तार करके जेल मे डाल दिया। उन्हें अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया। इसी जेल में रहते हुए उनकी तबियत खराब हो गयी। उन्हे तपेदिक हो गया। वे बहुत कमजोर हो गये।
सुभाषचन्द्र बोस का यूरोपीय जीवन
ब्रिटिश सरकार ने उनकी मृत्यु होने पर उत्पन्न होने वोले खतरे को भांपते हुए सुभाष चन्द्र बोस को रिहा करके यूरोप भिजवा दिया गया। इस प्रकार वे 1933 ई. तक वे जेल में रहे। युरोप में वे 3 वर्षों तक रहे। 1934 ई. में उन्हें पता चला कि उनके पिता की तबियत बहुत खराब है तो वे कराची के रास्ते अपने घर आ गये। लेकिन घर आने से पहले उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। अंग्रेजों ने उन्हे पकड़कर फिर से युरोप भिजवा दिया।
यरोप मे रहते हए भी सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता प्राप्ति के अपने कार्य को नही भूले। वे बडी चालाकी से अपना कार्य करते रहे। उन्होंने आयरलैंड के डी. वोलेरो और इटली के मुसोलिनी को भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उनका साथ देने के लिए मना लिया। इन नेताओं ने सुभाष चन्द्र बोस को हर सम्भव सहायता देने का आश्वासन दिया।
कमला नेहरू की मृत्यु
इसी समय आस्ट्रिया में जवाहरलाल नेहरू की पत्नि की तबियत खराब चल रही थी। वे उस समय जेल में बन्द थे। सुभाष चन्द्र बोस ने उनकी हर सम्भव मदद की। कमला नेहरू की मृत्यु होने पर जवाहर लाल नेहरू को जेल से रिहा कर दिया। जवाहरलाल नेहरू को सुभाष चन्द् बोस वे आस्ट्रिया में ही सांत्वना दी। इससे दोनों के रिश्तों में मधुरता आयी और दोनों एक दूसरे के निकट आ गये।
बिट्ठलभाई पटेल का इलाज तथा सुभाष चन्द्र बोस के नाम से वसीयत
यरोप में ही सरदार वल्लभ भाई पटेल के भाई बिट्ठलभाई पटेल का इलाज चल रहा था। सुभाष चन्द्र बोस ने उनकी सेवा की। इससे खूश होकर बिट्ठलभाई पटेल ने अपना सारी सम्पत्ति सुभाष चन्द्र बोस को देने की वसीयत कर दी। इस वसीयत से सरदार वल्लभ भाई पटेल खुश नही थे इसलिए उन्होंने इस वसीयत के विरूद कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया और जीत भी गये। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह सम्पत्ति महात्मा गाँधी को दान में दे दी।
सुभाष चन्द्र बोस की शादी
यूरोप में ही सुभाष चन्द्र बोस एक पुस्तक लिख रहे थे। उन्हे एक अंग्रेजी टाईपिस्ट की जरूरत थी। उनके एक मित्र ने उनकी मुलाकात ऐमिली शेंकर से करायी। एमिली शेंकर बोस से बहुत प्रभावित हुई। उनका सुभाष चन्द्र बोस के प्रति आकर्षण बढता चला गया। 1937 ई, में आस्ट्रिया में गास्टिन नामक स्थान पर दोनों की शादी हो गयी।
चीन की सहायता
1937 ई. में जापान ने चीन के ऊपर आक्रमण कर दिया। सुभाष ने ऐसे समय में चीन की सहायता करने के लिए द्वारकानाथ कोटनिस की अध्यक्षता में एक चिकित्कीय दल वहाँ भेजा। महात्मा गाँधी सुभाष चन्द्र बोस के इस काम के कारण उससे नाराज हो गये।
सुभाषचन्द्र बोस का काँगेस का अध्यक्ष बनना
बोस को 1938 मे काँग्रेस के हरिपुर अधिवेश मे कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 1939 ई. में भी सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन महात्मा गाँधी उन्हे अध्यक्ष पद पर नही देखना चाहते थे। सुभाष चन्द्र बोस पुन: अध्यक्ष पद के लिए खड़े हो गये। इसलिए महात्मा गाँधी ने पट्टाभि सीता रमैया को इनके विरूद अपना उम्मीदवार उतार दिया और 14 सदस्यी कार्यकारिणी को सुभाष चन्द्र बोस का साथ न देने का आह्वान किया। इसी आह्वान के चलते 12 सदस्यों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। केवल जवाहर लाल नेहरू तथा शरदचन्द्र बोस ही इस कार्यकारिणी में बने रहे।
1939 ई. में ही वार्षिक अधिवेशन त्रिपुरा में हुआ। इस समय सुभाष चन्द्र बोस की तबियत बहुत खराब थी। उन्हे स्टेचर पर लिटाकर लाया गया। महात्मा गाँधी भी इस अधिवेशन में नही आये। इसी अधिवेशन में अध्यक्ष पद के लिए के लिए चुनाव हुआ। इसमे सुभाष को 1580 तथा पट्टाभि सीता रमैया को 1377 वोट मिले और सुभाष पुन: अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हो गये। महात्मा गाँधी ने इस हार को अपनी हार समझा। इनकी इसी नाराजगी के चलते सुभाष ने 29 अप्रैल 1939 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
ऑल इंडिया फॉरवार्ड ब्लॉक की स्थापना
3 मई 1939 के दिन इन्होंने ऑल इंडिया फॉरवार्ड ब्लॉक की स्थापना की। यह एक राष्टवादी पार्टी थी। इसका उद्येश्य कमजोर लोगों को पार्टी से जोड़कर राष्टवादी आन्दोलनों को मजबूत करना था।
3 सितम्बर 1939 को सुभाष चन्द्र बोस को सूचना मिली कि जर्मनी ने इंगलैंड के ऊपर हमली कर दिया है। 8 सितम्बर 1939 को उन्होंने कांग्रेस के साथ बैठक की और कहा कि यह द्वितीय का समय स्वतंत्रता प्राप्ति का स्वर्णिम समय है। हमे आन्दोलनों के द्वारा अंग्रेजों के ऊपर अत्यंत दबाव बनाना चाहिए ताकि वे परेशान होकर भारत को य़थाशीघ्र छोड़ दे। किन्तु उनके विचारों से सहमत नही हुई। महात्मा गाँधी ने कहा कि हमे किसी की मजबूरी का फायदा नही उठाना नही चाहिए।
हॉलवेल सतम्भ
जुलाई 1940 में सुभाष चन्द्र बोस की पार्टी ने अंग्रेजों के ऊपर दबाव बनाने के लिए हॉलवेल सतम्भ को नष्ट कर दिया। यह स्तम्भ ब्लैक हॉल की घटना की याद में स्थापित किया था। इस पार्टी के सदस्य इस स्तम्भ की एक-एक ईट को अपने घर ले गये। इस घटना के बाद पुलिस ने सुभाष चन्द्र बोस तथा इनकी पार्टी के सदस्यों को पकड़कर जेल में डाल दिया।
यें इस स्वर्णिम अवसर को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। और अंग्रेज ऐसे समय में उन्हें रिहा करना नहीं चाहते थे। सुभाष चंद्र बोस ने भूख हड़ताल कर दी। इससे डरकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। लेकिन उन्हें उनके घर में ही कोलकाता में नजर बंद कर दिया।
सुभाष चन्द्र बोस का घर से पलायन
यें बड़ी चालाकी से 16 जनवरी 1941 को घर से निकल कर भाग गए। मोहम्मद जियाउद्दीन पठान बनकर वह घर से निकले। इसमें इनके बड़े भाई शरद चंद्र बाबू के बेटे शिशिर ने उनकी मदद की। शिशिर उन्हें अपनी कार से कोलकाता ले गए। कोलकाता से फिर शिशिर ने उन्हें तत्कालीन बिहार के गोमो नामक स्टेशन पर छोड़ दिया। इसी कारण इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन कर दिया गया है। इस स्टेशन से उन्होंने फ्रंटियर मेल पकड़ी और पेशावर आ गए।
पेशावर में उनकी मुलाकात उनके साथ काम करने वाले मियां अकबर शाह से हुई। अकबर शाह ने उनकी मुलाकात कीर्ति किसान पार्टी के भगतराम तलवार से कराई। भगतराम तलवार ने उन्हें काबुल पहुंचाने की जिम्मेदारी ली। भगतराम ने अपना नाम अहमद खान रखा तथा सुभाष उनके गूंगे और बहरे चाचा बन गए।
भारतीय व्यापारी उत्तम चंद्र मल्होत्रा से सुभाष चन्द्र बोस की मुलाकात
काबुल पहुंच कर सुभाष चन्द्र बोस मुलाकात एक भारतीय व्यापारी उत्तम चंद्र मल्होत्रा से हुई। उन्हीं के घर में वे 2 महीने तक रहे। काबुल में उन्होंने रूसी दूतावास में प्रवेश की नाकाम कोशिश की। जर्मन तथा इटालियन दूतावास में भी प्रवेश की कोशिश की। उनकी यह कोशिश रंग लाई। आरलैऺडो मेजोऺटा बनकर वे मास्को से होते हुए जर्मनी पहुंच गए।
बर्लिन में सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी सरकार के एक मंत्री एडम फॉन टॉट से दोस्ती कर ली। उन्होंने जर्मनी में ही आजाद हिंद रेडियो तथा मुक्ति फौज की स्थापना की। इस फौज में उन भारतीय सैनिक कैदियों को शामिल किया गया जो विश्व युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से लड़े थे और उन्हें पकड़ लिया था।
सुभाष चन्द्र बोस की एडोल्फ हिटलर के साथ मुलाकात
29 मई 1942 के दिन सुभाष चंद्र बोस की एडोल्फ हिटलर के साथ मुलाकात हुई। सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेज मुक्त भारत बनाने में उनका सहयोग मांगा। हिटलर को भारत में कोई रुचि नहीं थी और उन्होंने कोई स्पष्ट वचन भी नहीं लिया।
8 मार्च 1942 को निराश होकर सुभाष चन्द्र बोस आबिद हसन सफराणी के साथ जर्मन के कील बंदरगाह से जर्मनी पनडुब्बी के माध्यम से हिंद महासागर में मेडागास्कर के किनारे तक आ गए और वहां से जापानी पनडुब्बी से इंडोनेशिया के पादांग बंदरगाह तक पहुंच गए।
आजाद हिंद फौज (इंडिपेंडेंट इंडिया आर्मी)
इसकी स्थापना सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 29 अक्टूबर 1915 को राजा महेंद्र प्रताप ने की थी। इसके बाद 1 सितंबर 1942 को मलाया में कैप्टन मोहन सिंह व रासबिहारी बोस ने मिलकर आजाद हिंद फौज की स्थापना की। रास बिहारी बोस का जापान के साथ संबंध खराब हो गया था। सुभाष चंद्र बोस ने जापान के पीएम हितेकी को भारत की सहायता करने के लिए मना लिया। उन्होंने आश्वासन दिया कि हमारी सेना भी आजाद हिंद फौज के साथ अंग्रेजों का सफाया करने जाएगी। इसके बाद रासबिहारी बोस ने इस सेना की बागडोर सुभाष चंद्र के हाथ में दे दी। इस सेना का आदर्श वाक्य था – एकता, वफादारी और बलिदान। इसका मूल मंत्र था – 3 m यानि money, men और material।
दिल्ली चलो तथा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा
2 जुलाई 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने दिल्ली चलो का नारा दिया। 4 जुलाई 1945 के दिन सुभाष चन्द्र बोस को इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का अध्यक्ष चुना गया। इसी समय सुभाष चंद्र बोस को रासबिहारी बोस के द्वारा आजाद हिंद फौज़ का कार्यभार सौंपा गया।आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन हुआ और बॉस ने 7 अक्टूबर को इसका नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। इस फौज में जापानी फौज के द्वारा पकड़े गए भारतीय सैनिकों को भर्ती किया गया था। इस फौज में औरतों को भी स्थान दिया गया। इसके लिए झांसी की रानी रेजीमेंट बनाई गई। सिंगापुर में ही वहां के स्थानीय लोगों को इसमें शामिल होने तथा आर्थिक मदद देने का आवाहान किया गया।उन्होंने लोगों से कहा कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। 5 जुलाई 1943 को सेना को संबोधित करते हुए दिल्ली चलो का नारा सुभाष चंद्र बोस के द्वारा सिंगापुर के कैथो हाल में दिया गया था।
आजाद हिंद सरकार
21 अक्टूबर 1943 में अस्थाई आजाद हिंद सरकार बनाई गई। वह खुद ही सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेना के अध्यक्ष व युद्ध मंत्री बने। इस सरकार को 9 देश यानि जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, माऺन्चुको और आयरलैंड ने मान्यता प्रदान की। वित्त विभाग S.C. चैटर्जी को तथा प्रचार विभाग S. A. अय्यर को दिया गया। महिला संगठन का अध्यक्ष लक्ष्मी स्वामी नाथन को बनाया गया। इसका विवाह प्रेम सहगल के साथ हुआ। इसके उनका नाम बदलकर लक्ष्मी सहगल हो गया। आजाद हिंद फौज का मुख्यालय रंगून था। इसके दो डिवीजन थे।
प्रथम डिवीजन में चार बटालियन की जो निम्न है –
बिग्रेड | अध्यक्ष | |
1 | सुभाष बिग्रेड | शाहनवाज खान |
2 | गांधी ब्रिगेड | इनायत खान |
3 | आजाद ब्रिगेड | गुलजार सिंह |
4 | नेहरू ब्रिगेड | दयाल सिंह ढिल्लों |
द्वितीय डिवीजन में दो बटालियन थी
बिग्रेड | अध्यक्ष | |
1 | रानी लक्ष्मीबाई | लक्ष्मी स्वामीनाथन |
2 | इन्फेंट्री | प्रेम सहगल |
ब्रिटिश भारत के साथ युद्ध
आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना के साथ ब्रिटिश भारत पर हमला कर दिया तथा अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह को जीत लिया। 4 फरवरी 1944 को इन द्वीपों का बोस ने नया नामकरण शहीद द्वीप व स्वराज द्वीप कर दिया। इसके बाद कोहिमा व इंफाल पर हमला कर दिया। अंग्रेजों की अच्छी तैयारी के चलते इन्हें पीछे हटना पड़ा।
6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो से महात्मा गांधी के नाम से प्रसारण किया कि हम जापानी सेना की मदद से भारत में घुसने वाले हैं और जल्दी ही भारत को आजाद कर लेंगे। हमें अपना आशीर्वाद दे। गांधी जी ने उनकी इस अपील का विरोध किया और शंका की कि यदि आजाद हिंद फौज जापानी फौज की सहायता से जीत भी जाए तो हो सकता है कि फिर भारत पर जापानियों का कब्जा हो जाए। इसलिए महात्मा गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस के इस कदम को भारत के हित में होने से मना कर दिया।
इस प्रसारण के दौरान नेताजी ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा। इसी बीच जापान पर 6 जुलाई तथा 8 जुलाई को नासासाकी तथा हिरोशिमा पर बम गिरा दिया गया तथा जापान ने 14 अगस्त 1945 को अमेरिका के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जापान की सेना ने आजाद हिंद फौज का साथ छोड़ दिया। इसी घटना ने सुभाष चन्द्र बोस के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
जापान की सेना हटने से आजाद हिंद फौज को भी पीछे हटना पड़ा। जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की परंतु नेताजी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट की लड़कियों के साथ सैकड़ों मील पैदल चलना और उन्हें सुरक्षित पहुंचाना उचित समझा। इस प्रकार नेताजी ने एक अच्छे नेतृत्व का परिचय दिया। इसके बाद नेताजी जापान जाने के लिए रवाना हो गए।
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु
18 अगस्त को उनका विमान ताइवान के ताइहोकू हवाई अड्डे के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 1 सितंबर में उनकी अस्थियां टोक्यो के रेऺकोजी मंदिर में रख दी गई। उनके साथी जापानी जनरल पायलट तथा अन्य व्यक्ति मारे गए। भारतीय राष्ट्रीय लेखाकार में उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध है।
जांच
सुभाष चंद्र बोस की दुर्घटना की जांच करने के लिए तीन आयोग बने। पहला आयोग जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में बनाया। दूसरा आयोग जिसके अध्यक्ष खोसला थे इंदिरा गांधी ने 1977 में बनाया। दोनों ही आयोग मृत्यु का पता लगाने में असफल रहे। तीसरा आयोग अटल बिहारी वाजपेई ने मनोज कुमार मुखर्जी की अध्यक्षता में बनाया।
यह आयोग ताइवान सरकार से मिला। ताइवान सरकार ने उस समय ऐसी दुर्घटना होने से मना कर दिया। इस आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि बोस की मौत दुर्घटना में नहीं हुई लेकिन सरकार ने आयोग की रिपोर्ट कर दिया। आबिद हुसैन के द्वारा सर्वप्रथम जय हिंद बोला गया। इसके बाद में 2 नवंबर 1941 में सभी सैनिकों को जय हिंद बोलने के लिए कहा गया। इसके बाद नेता जी के इस नारे को स्वीकार कर लिया गया।
आजाद हिंद फौज पर मुक़दमा
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बाद आजाद हिंद फौज पर मुकदमा चलाया गया। लार्ड वेवेल के द्वारा यह केस दो ट्रायल में चलाया गया तथा पकड़े गए छह व्यक्तियों पर चला। पहले ट्रायल में शाहनवाज खान, प्रेम सहगल तथा दयाल सिंह ढिल्लों पर केस चला। इस केस को लाल किला केस कहा गया। इस केस में तीनों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और दोषी पाया गया। तीनों को मृत्युदंड की सजा दी गई। इस सजा की जनता को खबर मिल गई।
जनता उग्र हो गई। लाल किले को घेर लिया। वेवेल ने घबराकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करके तीनों को रिहा कर दिया। अब्दुल राशिद, सिंधारा तथा फतेहा खान पर भी मुकदमा चला तथा इसमें भी तीनों को रिहा कर दिया। आजाद हिंद फौज के अधिकारियों को बचाने के लिए एक समिति की स्थापना की गई थी। इसमें जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई, अरूणा आसफ अली, टी पी सप्रू, केएन काटजू आदि शामिल थे। भूला भाई एक वकील थे।
लेखन कार्य
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में व्यस्त रहने के बावजूद भी उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। जिसका नाम था एक भारतीय यात्री एन इंडियन पिलग्रिम। यह एक अपूर्ण आत्मकथा थी। इसके साथ ही इन्होंने दो खंडों में एक पुस्तक भारत का संघर्ष की लिखी।
सुभाष चंद्र बोस का दूरगामी प्रभाव
यद्यपि आजाद हिंद फौज अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई। फिर भी भारत पर इसका एक सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसी प्रभाव के चलते 1940 में नौसेना विद्रोह हुआ। इसी प्रभाव के चलते ब्रिटिश भारत के सभी सैनिकों में राष्ट्र भावना फैल गई। अब अंग्रेजों को विश्वास हो गया कि हम अपने 70000 सैनिकों के सहारे भारत को गुलाम नहीं रख पाएंगे इसलिए उन्होंने भारत को स्वतंत्र करने का फैसला लिया।
इन्हे भी पढ़े –