महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi | Mahatma Gandhi ki Jivani | महात्मा गांधी का जन्म, मृत्यु, पिता का नाम, माता का नाम, बेटों के नाम, बेटी का नाम
भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में महात्मा गांधी का अहम योगदान था। वे सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। विभिन्न जाति और धर्म वाले भारत की जनता में एकता स्थापित करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में महात्मा गांधी की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे मरते दम तक हिंदू मुस्लिम एकता की कोशिश करते रहे। सत्य और अहिंसा का समर्थक होने के कारण ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने में उनकी अहम भूमिका को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई थी। इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी की जीवनी तथा इनका स्वतंत्रता आंदोलन में क्या-क्या योगदान रहा, पढ़ेंगे। इसमें हम यह भी पढ़ेंगे कि इनकी छूत वर्गों (non-touchable classes) के प्रति क्या सोच थी तथा इनके बी आर अंबेडकर के साथ संबंध कैसे थे।
महात्मा गांधी का पारिवारिक परिचय
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। यह एक बनिया परिवार से संबंध रखते थे। इनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर, राजकोट और कुछ काठियावाड़ी राज्यों के दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई एक कट्टर धार्मिक महिला थी। महात्मा गांधी के ऊपर उनकी माता का बहुत प्रभाव था। 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया। विवाह के समय कस्तूरबा गांधी की आयु 14 वर्ष थी। महात्मा गांधी के चार पुत्र थे – हरिलाल, मणिलाल, देवदास, रामदास। इनकी कोई बेटी नहीं थी।
शैक्षिक परिचय
महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ के हाई स्कूल में हुई। नवंबर 1987 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। जनवरी 1988 में उन्होंने भावनगर के सामल दास कॉलेज में एडमिशन लिया और अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की। उच्च शिक्षा के लिए लंदन और इनर टेंपल गए। लंदन में उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री हासिल की। लंदन से वापस आने के बाद उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में वकालत करना शुरू किया। क्वकालत के दौरान अपने मिशन के लिए वह नटाल और तत्पश्चात ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने के लिए प्रवेश लिया और वहीं पर बसने का इरादा किया।
महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका प्रस्थान
ब्रिटेन में कानून की शिक्षा लेने के बाद में महात्मा गांधी वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों में भारतीयों की स्थिति ठीक नहीं थी। उन्हें नस्लवाद ,भेदभाव, और हीन भावना का शिकार होना पड़ता था तथा अफ्रीकी व अश्वेत एशियाई लोगों के साथ में गंदी बस्तियों में रहना पड़ता था। उन्हें 9:00 PM बजे के बाद घर से निकलने की अनुमति नही थी। उन्हें सार्वजनिक फुटपाथ पर भी चलने की अनुमति नहीं थी।
उन्होंने सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह चलाएं तथा नस्लवादी अधिकारियों के विरुद्ध संघर्ष किया। ट्रांसवाल सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी के रूप में नामित होने के बाद ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की महात्मा गांधी ने नीव डाली। वे इस संगठन के सेक्रेटरी और मुख्य कानूनी सलाहकार बने। वर्ष 1903 में इंडियन ओपिनियन और फिनिक्स बस्ती की नई डाली। 1906 में स्ट्रेचर वाही कोर का नेतृत्व किया। एशियाई विरोधी कानून, 1906 के विरोध में आंदोलन किया। अधिनियम वापसी के बारे में प्रतिनिधित्व मॉडल में इंग्लैंड गए।
अफ्रीका में सविनय अवज्ञा आंदोलन
एक्ट के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। जनरल स्मार्ट्स और गांधी के मंदिर वार्ता हुई और समझौता हुआ। बाद में स्मार्ट्स ने समझौते को ना मंजूर कर दिया और कानून वापस लेने के वायदे से मुकर गये। सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुन चालू किया। कानून तोड़ने के अपराध में इन्हें दो बार बंदी बनाया गया। वर्ष 1909 में पुणे इंग्लैंड में ब्रिटिश जनता के समक्ष भारतीय पक्ष प्रस्तुत करने गए। ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और उनके साथ समझौता करना पड़ा। इस प्रकार उन्होंने अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों को की रक्षा की। महात्मा गांधी 1894 से लेकर 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।
महात्मा गांधी का भारत में आगमन
गांधीजी 40 वर्ष की आयु में 1915 में भारत लौटे। पूरे 1 वर्ष तक उन्होंने देश का भ्रमण किया और भारतीय जनता की दशा को समझा। फिर उन्होंने 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम की स्थापना की। उनके मित्रों और अनुयायियों ने वहां रहकर सत्य तथा अहिंसा को समझा तथा इसका प्रयोग भी करना शुरू किया।
उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन
महात्मा गांधी ने भारत में आकर सर्वप्रथम अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सन 1917 में चंपारण की खेती और श्रमिकों की समस्या को हल किया। 1918 में खेड़ा अकाल और अहमदाबाद में मिल हड़ताल की समस्या के समाधान में मदद की और कार्यकर्ता भर्ती अभियान चलाया। सन 1919 में रोलर एक्ट के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। जब वे दिल्ली जा रहे थे तो रास्ते में कोसी में गिरफ्तार कर लिये गए । उन्हे मुंबई वापस भेज दिया गया।
सन 1919 में ही पंजाब में अशांति फैली और पंजाब की जनता के ऊपर ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा अत्याचार किया गया। इसकी जांच करने के लिए कांग्रेस के द्वारा एक कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के वे सदस्य बनाए गए । खिलाफत आंदोलन में भाग लिया। 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया। 1921 में लोर्ड रीडिंग के साथ साक्षात्कार हुआ। सन 1921 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मुख्य कार्य संचालक बनाए गए। 1922 में चोरी चोरा आंदोलन के कारण सविनय होगा आंदोलन स्थगित कर दिया। मार्च 10 1922 गिरफ्तार हुए और 6 वर्ष के साधारण कारावास की सजा हुई।
महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह
गांधी जी ने अपनी सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग भारत में 1917 में किया। ब्रिटिश अधिकारी किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराते थे तथा किसानों को अपनी उपज कम दामों पर बेचने के के लिए विवश करते थे। अंग्रेज अधिकारियों के ऐसे रूपों के चलते किसान बहुत परेशान थे। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत में लौटने पर किसानों ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह के बारे में सुना था। किसान अपनी समस्या को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में उन्हें सफलता मिली। यह ‘महात्मा गांधी का जीवन परिचय’ में उनका प्रथम आन्दोलन है।
अहमदाबाद में मजदूरों की हड़ताल
1917 में अहमदाबाद के मील मालिकों तथा श्रमिकों के बीच में विवाद चल रहा था। मजदूर मालिकों से अपनी मजदूरी बढ़ाने के लिए कह रहे थे। लेकिन मील मलिक उनकी मजदूरी नहीं बढ़ा रहे थे। मजदूर लोग महात्मा गांधी के पास गए। महात्मा गांधी ने उन्हें राय दी कि वें 35% वृद्धि के लिए मांग करें और हड़ताल पर चले जाए और याद रखें कि हड़ताल के दौरान मिल मालिकों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा न हो। महात्मा गांधी जी ने उनका साथ देने के लिए आमरण अनशन किया। मील मालिकों पर प्रेशर पड़ने पर उन्होंने श्रमिकों की मजदूरी में 35% की वृद्धि की। इस प्रकार यह महात्मा गांधी के सत्याग्रह की दूसरी सफलता थी। यह ‘महात्मा गाँधी का जीवन परिचय’ में उनका द्वितीय आन्दोलन है।
खेड़ा सत्याग्रह
1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में बाढ़ के कारण किसानों की फसले बर्बाद हो गई। वें लगान देने के में अक्षम हो गए। लेकिन सरकार उनसे किसी भी हालत में लगान वसूल करना चाहती थी। महात्मा गांधी ने उन किसानों की मदद की और उन्हें सत्याग्रह करने के लिए कहा। लेकिन बाद में जब पता चला कि सरकार उन्ही किसानों से लगन दे रही है जों इसके सक्षम हैं। यह जानने के बाद महात्मा गांधी ने इस सत्याग्रह को वापस ले लिया। इसी सत्याग्रह में वल्लभभाई पटेल उनके अनुयाई बने।
रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह
अंग्रेजी सरकार ने रोलेट एक्ट बनाया जिसके अनुसार पुलिस शक के आधार पर बिना मुकदमा चलाएं किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी और जेल में बंद कर सकती थी। इस एक्ट का सभी राष्ट्रवादियों ने विरोध किया। महात्मा गांधी ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने एक सत्याग्रह सभा बनाई। इसके सदस्य को इस कानून का पालन न करने की राय दी गई। सभी सदस्यों को गांव-गांव में जाकर राष्ट्रवाद का प्रचार करने के लिए कहा गया। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1919 में मार्च और अप्रैल महीना में देशभर से लोग इस आन्दोलन में कूद पड़े। पूरा देश एक नए जोश से गया। लोग सड़कों पर निकल पड़े और प्रदर्शन करने लगे। हिंदू मुस्लिम एकता के नारे लगने लगे। भारतीय जनता विदेशी शासन के अपमान को और अधिक सहन नहीं करना चाहती थी।
जलियांवाला बाग
रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को एक व्यापक हड़ताल का आह्वान किया था। इस आह्वान के परिणामस्वरूप उमड़े जन सैलाब को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने दमन की नीति अपनाई। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बजाई गई। अपने प्रिय नेता सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को भारी भीड़ जलियांवाला बाग में इकट्ठी हुई थी। यह बाग तीन ओर से मकान से गिरा हुआ है और इसमें बाहर निकलने का रास्ता भी एक ही है। अमृतसर के फौजी कमांडर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग का मुख्य द्वार बंद कर कराकर निहत्थी जनता पर गोली चलवा दी। जनता के ऊपर मशीन गन से गोलियां बरसाई गई। इधर-उधर भागती हुई जनता को कोड़ों से से पीटा गया। इस घटना के बाद पूरे पंजाब में मार्शल ला लगा दिया गया।
खिलाफत आन्दोलन
शब्द खिलाफत का अर्थ विरोध करना होता है। यह आन्दोलन अंग्रेजों का विरोध करने तथा खलीफा को पुनः उनका पद दिलाने के लिए हुआ था। खलीफा ऑटोमन साम्राज्य ( तुर्की साम्राज्य) का सुल्तान होता था। यह पद विश्वभर के मुसलमानों के लिए उच्चतम राजनातिक तथा आध्यात्मिक पद होता था। 1914 से 1918 तक प्रथम विश्न युद्ध हुआ। इसमे एक तरफ मित्र राष्ट (ब्रिटेन, फ्रास आदि) थे और दूसरी तरफ सेन्टृल पॉवर ( ऑस्टृिया और हंगरी, जर्मनी, ट्रकी साम्राज्य)। ट्रकी का सुल्तान जर्मनी का साथ दे रहा था।
युद्ध के समय ट्रकी की जनता का साथ लेने के लिए अंग्रेजों ने घोषणा की कि इस विश्व युद्ध के बाद ट्रकी से बदला नही लिया जायेगा और वे ट्रकी साम्राज्य को भी छिन्न-भिन्न नही होने देंगे। 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया।
लेकिन इस युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकारअपने वायदों को भूल गई। उन्होंने वर्साय की संधि के अनुसार टर्की के सुल्तान को बंदी बना लिया। तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। ब्रिटिश सरकार के इस विश्वासघास के करण दुनिया भर के मुसलमान नाराज हो गए। उन सब ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया।
भारत में खिलाफत आन्दोलन
भारत में भी मुसलमानों ने अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। खलीफा के पद को बनाये रखने के लिए तथा अंग्रेजों के विरोध करने के लिए भारत में जो आंदोलन हुआ, उसे खिलाफत आन्दोलन कहा गया।
खिलाफत आन्दोलन को संचारित करने के लिए 1919 में एक खिलाफत कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी के सदस्य थे- मौहम्मद अली, शौकत अली, हकीम अजमल खान, हजरत मोहानी और मौलाना अब्दुल कलाम अजाद। इस आन्दोलन के लिए दिल्ली में अखिल भारतीय सम्मेलन किया गया। महात्मा गांधी को इस सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। महात्मा गाँधी ने हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए इस आन्दोलन की अध्यक्षता को स्वीकार किया।
1922 में तुर्की के लोगों के द्वारा युवा नेता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृव्य में खलीफा को उसके पद से पूर्णतया हटा दिया गया। इसके साथ ही भारत में भी यह आन्दोलन बन्द हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन अपने उद्देश्य को प्राप्त नही कर सका लेकिन भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता को स्थापित करने तथा राष्ट्रवाद को बढ़ाने में यह आन्दोलन सफल हुआ।
असहयोग आन्दोलन
महात्मा गांधी का यह प्रथम महत्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था। पंजाब में अंग्रेजों के द्वारा जनता पर किया जाने वाला अत्याचार, माण्ट-फोर्ड सुधार, रौलेट एक्ट, जलियावाला बाग जैसी घटनाओं ने भारतीय जनता के मन में अत्यधिक रोष उत्पन्न कर दिया था। महात्मा गाँधी ने प्रथम विश्व यूद्ध के दौरान अंग्रेजों के साथ सहयोग किया था। इस सहयोग के लिए उन्हे केसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन इन उपरोक्त घटनाओं को देखकर अंग्रेजों को वे शैतान कहने लगे। देश की जनता में लगी गुस्से की जवाला को देखकर उन्होने भांप लिया कि यह आन्दोलन करने का सही समय है।
देश में उत्पन्न हुई भयावह स्थिति पर विचार करने के लिए सितम्बर 1920 में कांग्रेस के अधिवेशन को आहुत किया गया। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। अंग्रेजों को शैतान कहते हुए उन्होंने कहा कि अब इनके साथ सहयोग करना नितान्त असम्भव है। उन्होंने कहा कि हम इनके विरूध्द तब तक असहयोग आन्दोलन चलायेंगे जब तक स्वराज्य प्राप्त नही कर लेते। लाला लाजपत राय ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। पंडित मदन मोहन मालवीय, चितरंजन दास, श्रीमती एनी बेसेण्ट तथा खारपड़े ने इस आन्दोलन का विरोध किया था। महात्मा गांधी के पक्ष में 2728 और विरोध में 1855 मत पड़े। 873 मतों से यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।
दिसम्बर 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में पुनः यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। महात्मा गाँधी ने जनता के सामने निम्न कार्यक्रम रखे –
- विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार
- सरकारी न्यायालयों का बहिस्कार
- सरकारी स्कूल/कॉलेजों का बहिस्कार
- सरकार द्वारा दी गई उपाधियों का परित्याग
- सरकारी नौकरियों का परित्याग
- भारतीयों को मेसापोटामिया में जाकर नौकरी करने से इंकार
महात्मा गाँधी ने इस आन्दोलन की शुरूआत केसर-ए-हिन्द की उपाधि को त्यागकर की। यह आन्दोलन देशभर में जोर-शोर से चला। हजारों छात्रों ने अपने स्कूल-कॉलेजों का बहिस्कार किया। कर्मचारियों ने अपनी-अपनी नौकरियों को छोड़ दिया। वकीलों ने अपनी-अपनी वकालते छोड़ दी। इन वकीलों में बंगाल के देशबंधु चितरंजन दास, पंजाब के लाला लाजपत राय, गुजरात के विट्ठल भाई पटेल तथा वल्लभभाई पटेल, मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, उत्तर प्रदेश के मोतीलाल नेहरू तथा जवाहरलाल नेहरू तथा बिहार के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि प्रमुख थे। विदेशी वस्त्रों का भी आम जनता द्वारा बहिष्कार किया गया। सन 1919 के अधिनियम के अंतर्गत गठित होने वाली विधानसभा का बहिष्कार किया गया।
इसी आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई। गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, राष्ट्रीय मुस्लिम विद्यालय अलीगढ़, जामिया मिलिया, दिल्ली, काशी विद्यापीठ आदि इसी दौरान स्थापित किए गए।
कांग्रेस में इस आंदोलन के बीच में सरकार के साथ समझौता करने की कोशिश की। लेकिन सरकार के अड़ियल रवैये के चलते समझौता नहीं हो सका। सरकार ने भी आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। कांग्रेस स्वयंसेवक दल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। देशभर में 50000 आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई। गांधी जी को छोड़कर कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। विभिन्न स्थानों पर होने वाली सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 4 मार्च 1930 ई को ननकाना साहिब के गुरुद्वारे में सिक्खों पर गोलियां चलाई गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस कार्रवाई में 70 व्यक्ति मारे गए।
चौरी-चौरा कांड एवं आंदोलन का स्थगन
5 फरवरी 1922 ई को गोरखपुर जिले में चौरी-चोरा नामक स्थान पर एक घटना हुई। कुछ व्यक्ति शांतिपूर्ण तरीके से अपना जुलूस निकाल रहे थे। तभी पुलिस ने आकर उनके ऊपर गोली चला दी। गोली चलाने के कारण भीड़ क्रोधित होकर हिंसक हो गई। उन्होंने थाने को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इस घटना में 21 सिपाहियों और एक दरोगा की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना से गांधीजी बहुत दुखी हुए और उन्होंने 5 फरवरी 1922 को आंदोलन को वापस ले लिया।
10 मार्च 1922 ई को महात्मा गांधी को पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उनको 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।लेकिन गांधी जी के बीमारी के कारण उन्हें 5 फरवरी 1924 ई को जेल से रिहा कर दिया गया।
आंदोलन के स्थगित किए जाने पर प्रतिक्रियाएं
इस आंदोलन को स्थगित किए जाने के कारण राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, शौकत अली, मुहम्मद अली जिन्ना, सुभाष चन्द्र बोस तथा लाला लाजपत राय महात्मा गाँधी से असंतुष्ट हो गये। मोतीलाल नेहरू और लाला लाजपत राय ने जेल में ही महात्मा गांधी को पत्र लिखा कि जब आन्दोलन सफल होने की स्थिति में था तो इसे बन्द करने की जरूरत क्या थी। किसी एक स्थान पर हुए दंगे के कारण संपूर्ण देश को दंड देना क्या उचित है। यदि जुम्मू कश्मीर में कोई हिंसक घटना हो जाती है तो क्या इसकी सजा कन्या कुमारी के लोगों को मिलेगी।
यह आन्दोलन सफल हुआ या असफल
प्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल नही हुआ परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से यह आन्दोलन सफल हुआ। इस आन्दोलन की निम्नलिखित सफलताए है-
- भारतीय जनता में राष्टृवाद की भावना उत्पन्न की।
- ब्रिटिश सरकार की नीव हिला दी।
- स्वराज्य का संदेश घर-घर पहुँचाया।
- भारत के विभिन्न वर्गों के बीच एकता स्थापित की।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
यह महात्मा गांधी का दूसरा बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन था। साइमन कमीशन के बाद में ऐसी बहुत सी परिस्थितियां बन गई थी जिसके कारण एक देशव्यापी आंदोलन को चलाया जाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को मानने से मना कर दिया था। महात्मा गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को चलाने की घोषणा कर दी। उन्होंने इस आंदोलन को शान्ति, विनम्रता और अहिंसक तरीके से संचारित करने के लिए कहा। इस आंदोलन की शुरुआत गांधी जी की दांडी यात्रा से हुई। इसमें गांधी जी ने नमक बनाकर सरकारी कानून को तोड़ा।
दांडी यात्रा
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ दांडी यात्रा की ऐतिहासिक घटना से हुआ है। इसमें गुजरात के साबरमती आश्रम के 79 सदस्यों ने भाग लिया। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 79 सदस्यों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया। 200 मील की दूरी पैदल ही 24 दिन में तय की गई। यात्रा को मैन रोड से न होकर गांव के बीच से होकर जाने की प्लानिंग की गई। ताकि इसमें अधिक से अधिक व्यक्ति को जोड़ा जा सके। जहाँ-जहाँ यह यात्रा रूकी, वंही पर हजारों लोग उसमे शामिल हो गये।
महात्मा गांधी जन समुदाय के साथ 5 अप्रैल 1930 को समुद्र किनारे दांडी नामक स्थान पर पहुंचे। 6 अप्रैल 1930 को आत्म शुद्धि के बाद उनहोंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और इस तरह से नमक बनाकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा और इस तरह से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम
दांडी नामक स्थान पर गांधी जी ने निम्न कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई –
- विदेशी कपड़ों को जला देना।
- अस्पृश्यता का त्याग करना।
- विद्यार्थी तथा शिक्षक अपना स्कूल छोड़ दे।
- सरकारी नौकर अपनी नौकरी छोड़ दे।
- मादक पदार्थों का विरोध करें।
महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की गति बढ़ गई है।
गोलमेज सम्मेलन
प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को ब्रिटेन में लंदन में संपन्न हुआ कांग्रेस और महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया। दूसरा गोलमेज सम्मेलन सितंबर 1931 में हुआ। इसमें कांग्रेस के एकल प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी सम्मिलित हुए। तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 को हुआ। बाबा साहेब आंबेडकर इन तीनों सम्मेलनों में शामिल हुए।
कांग्रेस इसमे शामिल नही हुई। सरकारी की दमनकारी नीति के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन धीरे-धीरे स्वयं समाप्त होता चला गया। 8 में 1935 को गांधी जी को जेल से मुक्त कर दिया गया महात्मा गांधी जी का विचार था कि जनता के वह आतंक को दूर करने के लिए आंदोलन स्थापित किया जाए अतः मार्ग 1934 में आंदोलन में स्थगित कर दिया गया।
प्रथम् गोलमेज सम्मेलन में सम्मेलन में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर ने दलित समाज के पक्ष में एक जोरदार भाषण दिया। इसमे दलितो के लिए अलग कम्युनल अवार्ड देने की मांग की। उन्होंने कहा कि जैसे सिख और मुस्लिम हिन्दुओं से अलग है, वैसे ही दलित भी। दलितों को हिन्दु समाज से बहिस्कृत करके रखा है। वें हिन्दु ब्रिटिश सरकार को सोचने पर मजहबूर कर दिया। उस समय एक तरफ भारतीयों हिन्दुओं का अंग्रजों की गुलामी से मुक्ति का आन्दोलन चल रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ निम्न जातियों का उच्च जातियों की गुलामी से मुक्ति के लिए आन्दोलन चल रहा था। अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाले अत्याचार की अपेक्षा उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों पर किया जाने वाला जाने वाला अत्याचार बहुत अधिक था। पहले मुक्ति आन्दोलन का नेतृव्य करनेे वाले बहुत नेता थे जबकि दुसरे मुक्ति आन्दोलन का नेतृव्य करने वाला एक ही नेता था – डॉ. भीमराव अम्बेड़कर।
पुना पैक्ट
बाबा साहेब डॉ. भामराव अम्बेड़कर की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में की गई माँग को अमलीजामा पहनाते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 16 अगस्ट 1932 को कम्युनल अवार्ड की घोषणा की। इस घोषणा में निम्नलिखित प्रावधान किए गये-
- इसमे मुस्लिमोंं, सिक्खों, ईसाईयों,एंग्लों-इंडियन, यूरोपियनों तथा दलितों को पृथक निर्वाचक पध्दति ( separate electorate) दिया गया।
- इसमे यह व्यवस्था की गई कि दलितों का अपना अलग निर्वाचक मंंडल होगा। इसमे प्रतिनिधि भी दलित होगा और वोट भी दलित होगा। इस प्रकार जो प्रधिनिधि होगा, वह पूर्णतया अपने दलित समाज के प्रति जिम्मेदार होगा।
- दलितों को दो वोट देने का अधिकार दिया गया। एक वोट अपने प्रतिनिधि के लिए तथा दूसरी वोट सामन्य प्रतिनिधि के लिए।
- प्रान्तों की व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना कर दिया गया। दलितों के लिए 71 सीटों को आरक्षित कर दिया गया।
- विश्वविद्यालयों, जमीनदारों, उद्योग. व्यापार तथा श्रम में भी पृथक निर्वाचक पध्दति की व्यवस्था की गई तथा सीटे आरक्षित की गई।
महात्मा गांधी कट्टर हिन्दु नेता थे। वे हर हाल में वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना चाहते थे। उनका विचार था कि सभी जातियों को अपने वर्ण के अनुसार काम करना चाहिए। कम्युनल अवार्ड की घोषणा के समय वे पुणे की यरवदी जेल में थे। इसके विरोध में उन्होंने आमरण अनशण शुरू कि दिया। गाँधी जी उस समय बहुत बडे नेता थे। उनके आमरण करने से पूरे देश की जनता भड़क गयी और बाबा साहेब के विरोध में आन्दोलन करने लगी। बाबा साहेब को धमकी मिलने लगी कि गाँधी जी कुछ हो गया दलित समाज के साथ बुरे से बुरा व्यवहार करेंगे।
पंडित मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू तथा राजगोपालाचारी separate electorate demand को वापस लेने के लिए उनसे मिले। कस्तूरबा गांधी ने भी उनसे अपने सुहाग की भीख माँगी। उनके ऊपर अत्यधिक दबाव पड़ने पर वे गाँधी के साथ बात करने पर राजी हो गये। 24 सितम्बर 1932 को दोनों के मध्य जो समझौता हुआ, उसे ही पना पैैक्ट के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार गाँधी जी ने बाबा साहेब की पाँच की मेहनत के ऊपर पानी फेर दिया। बाबा साहेब ने भी गाँधी जी के ऊपर दबाव बना कर अपने समाज के लिए सीटे आरक्षित करने के लिए कहा।
पुना पैक्ट के अनुसार पृथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान के समाप्त कर दिया गया। इसके स्थान पर दलितों के लिए प्रातीय व्यवस्थापिकाओं में सीटों की संख्या को दुगना करके 148 कर दिया। केन्द्रीय विधानमंडल में भी 18% सीटे दलितों के लिए सुरक्षित कर दी गयी। इसके साथ ही स्थानीय निकायों तथी अन्य सेवाओं में भी इसके लिए सीटे सुरक्षित की गयी।
भारत छोड़ो आंदोलन
वर्धा प्रस्ताव के निर्णय के अनुसार 7 अगस्त 1942 ई को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमीशन का अधिवेशन प्रारंभ हुआ इस अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया।
1942 तक कांग्रेस यह जान गई थी कि अंग्रेज आसानी से भारत को छोड़कर जाने वाले नहीं थे। इसलिए उन्होंने एक बड़ा आंदोलन करने का निश्चय किया। लेकिन इस आंदोलन की तिथि की घोषणा नहीं की गई क्योंकि गांधी जी पहले अंग्रेजों के साथ वार्ता करना चाहते थे। गांधी जी ने कांग्रेस कार्य समिति के सामने 70 मिनट का ओजस्वी भाषण दिया। इसी भाषण में उन्होंने करो या मरो का संदेश दिया। 8 अगस्त 1942 को रात 10:30 बजे भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित हुआ।
इस प्रस्ताव की प्रमुख बातें निम्न है
- भारत को अब अंग्रेजों को हर हाल में स्वतंत्र कर देना चाहिए।
- ब्रिटिश सरकार भारत को शीघ्र छोड़ दें।
- देश के प्रमुख दलों और समूह का सहयोग प्राप्त करने वाली एक अस्थाई सरकार की स्थापना की जाए।
- भारत का संविधान संघात्मक होगा जिसमें इकाइयों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी।
- यदि प्रस्ताव की मांगों को नही माना गया तो गांधी जी के नेतृत्व में जनता आंदोलन आरंभ करेंगी।
8 अगस्त 1942 को कांग्रेस द्वारा यह स्वीकृत किया गया कि इस आंदोलन को शुरू करने से पहले महात्मा गांधी वायसराय से बात करेंगे। लेकिन सरकार ने गांधी जी को वायसराय से बात करने का अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त 1942 की सुबह ही महात्मा गांधी और कार्य समिति के सभी सदस्यों को सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस के सभी नेताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इस गिरफ्तार की खबर सुनकर के जनता में आक्रोश का तूफान उमर पाड़ा
अब आंदोलन को नेतृव्य प्रदान करने वाला कोई नेता नहीं रहा। महात्मा गांधी ने 70 मिनट के अपने भाषण के दौरान 12 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन 12 सूत्री कार्यक्रम में संपूर्ण देश में हड़ताल करने, सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने और लगान देने से मना करने के लिए कहा गया था। आंदोलन के कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु थे-
- महात्मा गांधी द्वारा दिया गया करो या मरो का नारा
- सार्वजनिक सभा करने, नमक बनाने तथा लगान देने से मना करने पर विशेष बल दिया गया।
- पुलिस थाना, तहसीलों को अहिंसक तरीके से घेरने पर बल दिया गया।
शुरू मैं यह आंदोलन बहुत तीव्र गति से चला। लेकिन बाद में सरकार की दमनकारी नीति के चलते यह आंदोलन धीमा पड़ता चला गया और 9 मई 1944 ई तक चला।
गाँ धी जी की यह आन्दोलन भी असफल हुआ।
महात्मा गांधी की पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books)
- हिन्द स्वराज – सन 1909 में
- दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
- मेरे सपनों का भारत
- ग्राम स्वराज
- ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
- रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान
मृत्यु
30 जनवरी सन 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे -‘हे राम’। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधी स्थल बनाया गया हैं। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए.
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