सोनपँखी हंस – बहुत समय पहले की बात है। वाराणसी शहर में एक परिवार रहता था। उस परिवार का मुखिया श्यामू एक बहुत नेक इंसान था। वह ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और परिश्रमी व्यक्ति था। वह ईमानदारी से अपनी जीविकोपार्जन करता था। वह इतना पैसा कमा लेता था जिससे उसका परिवार बिना किसी अभाव के खुशीपूर्वक रह सकता था।
श्यामू के परिवार में उसकी पत्नि तथा तीन लड़कियाँ थी। घर में किसी चीज का अभाव नही था। परिवार के सभी सदस्य अच्छा खाना खाते थें तथा अच्छे कपड़े पहनते थें। घर का भवन भी अच्छा था। सभी लोग शान्तिपूर्वक रह रहे थे। श्यामू को समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। वह लोगों की हर सम्भव मदद करता था। समाज के लोग भी उसका बहुत सम्मान करते थे तथा उसकी हर सम्भव मदद के लिए तैयार रहते थे।
इस प्रकार श्यामू तथा समाज के सभी लोग मिलजुल कर रह रहे थे। श्यामू का परिवार भी एक खुशवाली जिन्दगी व्यतीत कर रहा था। लेकिन उनकी यह खुशहाली ज्यादा दिन नही चली। अचानक श्यामू बीमार हो गया। काफी इलाज कराने के बाद भी वह ठीक नही हुआ। उसकी हालत दिनो-दिन खराब होती चली गयी। एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी।
श्यामू की मृत्यु के बाद उसके परिवार के ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट गया। श्यामू की मृत्यु के बाद कुछ दिनों तक तो समाज के लोगों ने उसके परिवार की मदद की, बाद में समाज ने उन्हे उनकी स्थिति पर छोड दिया। कुछ दिनों तक उसका परिवार उसके द्वारा अर्जित धन-सम्पत्ति पर गुजारा करता रहा। लेकिन यह धन-सम्पत्ति ज्यादा दिनों तक चलने वाली नही थी।
अर्जित धन-सम्पत्ति खत्म होने पर श्यामू के परिवार के बुरे दिन शुरू हो गये। उनको अब खाने के लाले पड़ने लगे। उसकी पत्नि तथा लड़कियों के पास पहनने के लिये अच्छे कपड़े नही रहे। अब वें पुराने तथा फटे हुए कपड़े पहनने पर मजबूर हो गये। अब उन्हे अच्छा खाना भी नसीब नही हो रहा था।
मरने के बाद श्यामू का पुनर्जन्म एक हंस के रूप में हुआ। उस हंस के पँख सोने के थे। इसलिए उस हंस को सोनपँखी हंस कहा गया। वह हंस अन्य सभी हंसों से अलग था। उसे अपने पूर्वजन्म की सभी घटनांए याद थी। वह अपने परिवार को याद करके चिन्तित रहता था।
एक दिन उसने अपने परिवार के हाल-चाल जानने के बारे में सोचा। उसने अपने घर जाने की योजना बनायी। वह तुरन्त अपने घर जाने के लिए निकल गया। काफी देर उडने के बाद वह अनन्त: अपने घर पहूँच गया। अपने बच्चों तथा पत्नि की हालत देखकर वह बहुत दुखी हुआ।
उसने अपनी पत्नि को पुकारा। एक पक्षी को बोलते हूुए देखकर उसकी पत्नि बहुत आश्चर्यचकित हुई। श्यामू ने कहा, ” हे प्रिय, मै तुम्हारा पति श्यामू हूँ। मरने के बाद हंस के रूप मे मेरा पुनर्जन्म हुआ है। मैं तुम सबकी हालत को देखकर बहुत दुखी हूँ। मै तूम्हारी मदद करना चाहता हूँ।”
उसकी पत्नि ने कहा, “हे प्रिय, अब तो आप केवल एक पक्षी हो। हमारी मदद आप कैसे कर सकते हो?” सोनपँखी हंस ने कहा, “मेरे पँख सोने के है। मै जब भी तुम्हारे से मिलने आऊंगा, एक पँख तुम्हे देकर जाऊंगा। तुम इसे बेचकर घर के लिए आवश्यक सामग्री खरीदकर ले आना।” तब उस सोनपँखी हंस ने अपनी पूर्व जन्म की पत्नि को एक पँख दे दिया। पँख देकर सोनपँखी हंस ( श्यामू ) चला गया।
श्यामू की पत्नि उस पँख को लेकर बाजार गयी और एक सोनार को वह पँख दे दिया। सोनार ने उस पँख के बदले में उसे काफी धन दे दिया। फिर वह बाजार से घर के लिए आवश्यक सामान लकर घर आ गयी।
अगले सप्ताह वह सोनपँखी हँस फिर अपने पूर्वजन्म के घर आया और अपनी पत्नि से घर की स्थिति के बारे में जाना। अपने घर में सुधार की स्थिति देखकर वह बहुत खुश हुआ। फिर वह उसे एक पँख देकर चला गया। यह सिलसिला चलता रहा। इस तरह से उसके परिवार के बुरे दिन खत्म हो गये और घर धन-धान्य से भर गया।
एक दिन सोनपँखी हंस ने एक सोने का पँख देकर अपनी पत्नि से कहा, “हे प्रिय, अब मै आगे आपसे मिलने नही आ पाऊंगा। मुझे अपने साथियों के साथ दुसरे देश में प्रवास के लिए जाना है। अब तुम्हारे पास इतना धन एकत्र हो गया है कि तुम सब अपने जीवन-पर्यन्त खुशीपूर्वक रह सकोगें। तुम अपनी तीनों लड़कियों का खर्चा भी वहन कर सकोगी।”
उसकी पत्नि काफी धन एकत्र करके लालची हो गयी थी। वह नही चाहती थी कि मुझे सोने का पँख मिलना बंद हो जाए। किन्तु श्यामू की लड़कियाँ उससे बहुत प्यास करती थी। संयोगवंश वें उस समय घर में नही थी। अत: श्यामू की पत्नि ने सोचा कि यह हंस सोने का पँख देने के लिए अभी आगे नही आयेगा। अत: उसने उस सोनपँखी हंस के सारे पँख ऊघाड़ने की योजना बनायी।
मन में यही सोचकर उसने सोनपँखी हंस से कहा, “पतिदेव मै आपकी पत्नि हूँ। इस जन्म मे भी मुझसे हमेशा के लिए विदा हो जाओगों। क्या आप पास में आकर मुझसे नही मिल सकते? आप मेरे पास आकर मुझे आशीर्वाद दीजिए। मैं आपके दर्शन के बिना कैसे खुशीपूर्वक रह सकती हूँ। कृपा करके पास में आकर मुझसे मिल लो। ऐसा करने से मेरे मन मे एक संतोष रहेगा कि मेरा पूर्व जन्म का पति मुझसे मिल कर गया है।”
सोनपँखी हंस पत्नि की बात सुनकर भावुक हो गया। वह जैसे ही उसके पास आया, उसकी पत्नि ने उसे पकड़ लिया और उसके सभी पँख उघाड़ लिये। वह हंस लहुलहान हो गया और बेहोश हो गया। उसकी पत्नि ने उसे घर के एक तरफ कचरे में फेंक दिया। उघाड़े गये पँख भी अब साधारण पँखो में बदल गये।
उसी समय उसकी तीनों बेटियाँ आ गयी। उन्होंने अपने पूर्व जन्म के पिता को दर्द से कराहते देखा। उनकी सब समझ में आ गया कि उनके पिता के साथ क्या हुआ है। उन्होंने उसे उठा लिया और उसका इलाज करवाया। जब वह हंस ठीक हो गया और उसके नये पँख आ गये, तो वह अपनी तीनों बेटियों को आशिर्वाद देते हुए उड़ गया और फिर कभी वापस नही आया।
इस कहानी से हमे शिक्षा मिलती है कि हमे किसी भी स्थिति में लालच नही करना चाहिए। लालच के वशीभूत होकर हमे जो लाभ प्राप्त होता है वह भी किसी काम का नही होता। जैसे श्यामू की पत्नि द्वारा उघाड़े गये पँख साधारण पँखों मे बदल गये।
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