प्राचीन इतिहास के स्रोत | Prachin Bharat ke Shrot

अतीत में घटी हुई घटनाओं को इतिहास कहा जाता है । लेकिन सभी घटनाओं को इतिहास नही कहा जा सकता । निश्चित रूप से घटी घटनाओं को ही इतिहास मे शामिल किया जाता हैं । उपलब्ध स्रोतों के आधार पर ही घटनाओं की निश्चितता को तय किया है । अत: प्रमाणिक स्रातों पर आधारित अतीत के क्रमबद्ध ज्ञान को ही इतिहास कहा जाता है । इस post मे हम भारत के ‘ Prachin Bharat ke Shrot ’ के बारे मे पढेंगे ।

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4 साहित्यिक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोत

पुरातात्विक स्रोत (प्राचीन  इतिहास के  स्रोत)

पुरातात्विक अवशेष  वे भौतिक अवशेष है जो पुरातत्व विभाग द्वारा खोजे जाते हैं और इतिहास लेखन में सहायक होते हैं। प्राचीन भारतीयों ने अपने पीछे अनगिनत भौतिक अवशेष छोड़े हैं।  यह अवशेष भूमि के ऊपर भी मिलते हैं और भूमि के नीचे भी मिट्टी के अंदर दबे हुए मिलते हैं।

जहां पर अवशेष मिट्टी के अंदर दबे हुए होते हैं, वहां पर मिट्टी का टीला बन जाता है । टीला धरती की सतह के उस उभरे हुए भाग को कहते हैं जिसके नीचे पुरानी बस्तियों के अवशेष रहते हैं। टीले कई प्रकार के हो सकते है जैसे- एकल सांस्कृतिक, मुख्य सांस्कृतिक और बहु सांस्कृतिक।

एकल सांस्कृतिक टीलों में सर्वत्र एक ही संस्कृति दिखाई देती है। मुख्य सांस्कृतिक टीलों में एक संस्कृति की प्रधानता होती है तथा दूसरी संस्कृतियां पूर्व काल की भी हो सकती है तथा उत्तर काल की भी । बहु सांस्कृतिक टीलों में बहुत ही संस्कृतियां रहती है । इस तरह के टीलों की खुदाई करने पर इनसे पुरातात्विक अवशेष निकलते हैं।

पुरातात्विक स्रोतों के प्रकार

  1. सिक्के
  2. अभिलेख
  3. स्मारक और भवन
  4. मूर्तियां और चित्रकला अवशेष
  5. सिक्के coins

सिक्के (प्राचीन  इतिहास के  स्रोत)

कुछ सिक्के धरातल पर मिले हैं और अधिकतर सिक्के जमीन खोदकर निकाले गए है।  सिक्कों के अध्ययन को मुद्रा शास्त्र या न्यूमिसमैटिक्स कहते हैं। इनका निम्नलिखित महत्व होता है-

  • इतिहास लेखन में सिक्कों का विशेष महत्व होता है।
  • वे प्राचीन सिक्के जिन पर कुछ लिखा नहीं होता बल्कि अनेक प्रकार के चिह्न उत्कीर्ण रहते हैं आहत सिक्के कहलाते हैं।
  • आरंभिक सिक्कों पर कुछ चिह्न  मिले हैं लेकिन बाद के सिक्कों पर राजाओं और महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम तथा तिथि भी अंकित है।
  • गुप्त शासकों ने सोने के सिक्के सबसे ज्यादा जारी किए जबकि सातवाहन शासकों ने सीसे के सिक्के चलाए थे।
  • समुद्रगुप्त के कुछ सिक्कों पर युप बना है तथा अंश‌्वमेघ पराक्रम लिखा है जिससे पता चलता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ कराया था।
  • पुराने सिक्के तांबे, चांदी सोना और सीसे के बनते थे जबकि मौर्योत्तर काल में सिक्के सीसे, पोटिन, तांबे, कांसे, चांदी और सोने से बने हैं।

सिक्कों से किसी भी राज्य की आर्थिक स्थिति और व्यापार के बारे बारे में पता चलता है ।

अभिलेख

अभिलेखों का महत्व सिक्कों से ज्यादा होता है। इसके  अध्ययन को पुरालेख शास्त्र या एपिग्राफी कहते हैं।

समग्र देश में आरंभिक अभिलेख पत्थरों पर खुदे मिलते हैं किंतु ईशा के आरंभिक शतकों में इस काम में ताम्रपत्रों का प्रयोग आरंभ हुआ तथापि पत्थर का लेख खोदने की परंपरा दक्षिण में जारी रही।

आरंभिक अभिलेख प्राकृत भाषा में मिलते हैं और यें ईशा पूर्व तीसरी सदी के है । अभिलेखों में संस्कृत भाषा दूसरी सदी से मिलने लगती है और चौथी पांचवी सदी में इसका सर्वत्र प्रयोग होने लगता है ।

सम्राट अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, यूनानी और अरमाइक तथा खरोष्ठी लिपि में लिखी गये । भारत में अशोक के ज्यादातर अभिलेख ब्राह्मी लिपि व प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं । यह लिपि बाएं से दाएं ओर लिखी जाती थी । पाकिस्तान  तथा अफगानिस्तान में यूनानी व अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है । खरोष्ठी लिपि का प्रयोग उत्तर पश्चिम पाकिस्तान में हुआ है ।

इन अभिलेखों को पढ़ने में जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में सर्वप्रथम सफलता मिली। जेम्स प्रिंसेप   ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में एक अच्छे पद पर कार्यरत थे ।

मास्कि, गुर्जरा के अभिलेख में अशोक का नाम मिलता है ।

भारत में शिलालेख का आरंभ अशोक ने किया था।

अशोक के शिलालेखों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  • शिलालेख
  • स्तंभ लेख
  • गुहा लेख

सबसे प्राचीन अभिलेख एशिया माइनर के बोगाज़कोई नाम के स्थान पर है जो 1400 पूर्व का है।  इस पर वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते हैं ।

भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुंफा अभिलेख में मिलता है ।

सर्वप्रथम भारत पर होने वाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।

सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख ( शासक भानुगुप्त ) से प्राप्त होता है ।

सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया ।

समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का पता चलता है ।

मास्की, गुर्जरा, निट्टूर एवं उत्खनन से प्राप्त अभिलेख में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख हुआ है ।

रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से मिलती है ।

अभिलेख शासन विषय
हाथीगुंफा अभिलेख खारवेल इसके शासनकाल की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण
जूनागढ़ गिरनार रुद्रदामन इसके विजय अभियानों और व्यक्तित्व का विवरण
नासिक अभिलेख गौतमी बलश्री सातवाहन कालीन घटनाओं का विवरण
प्रयाग स्तंभ लेख समुद्रगुप्त विजय अभियानों एवं नीतियों का वर्णन
ग्वालियर अभिलेख भोज प्रतिहार गुर्जर प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी
मंदसौर अभिलेख मालवा नरेश यशोवर्मन सैनिक उपलब्धियों का वर्णन
एहोल अभिलेख पुलकेशिन द्वितीय हर्ष एवं पुलकेशिन द्वितीय के युद्ध का विवरण

स्मारक एवं भवन

स्मारकों से प्राचीन भारत के बारे में जानकारी मिलती है। स्मारकों का Prachin Bharat ke Shrot में महत्वपूर्ण स्थान हैं। इनसे तत्कालीन भारत की संस्कृति ,धर्म व कला के बारे में जानकारी मिलती है।स्मारकों में भवन, मंदिर, स्तूप, मठ, बिहार, चैत्य आदि शामिल है।  स्मारक दो प्रकार के होते हैं देशी व विदेशी।  देसी स्मारकों में प्रमुख है नालंदा, तक्षशिला, सारनाथ, मथुरा, पाटलिपुत्र, राजगीरी, तक्षशिला आदि। तक्षशिला से कुषाण कालीन तिथि की जानकारी मिलती है ।

इसी तरह विदेशों में मंदिर व स्मारक मिले हैं जिनसे पता चलता है कि भारत के उन देशों के साथ संबंध रहे होंगे और कुछ भारतीय वहां पर जाकर बस गए होंगे और ऊन्होंने वहाँ पर मन्दिर तथा अन्य भवनों का निर्माण किया होगा ।

चित्रकला

चित्रकला भी प्राचीन भारत को जानने का एक स्रोत है।  इससे उस समय के भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मिक जानकारी मिलती है। पाषाण काल में ही मानव ने  गुफाओं व कन्दराओं में चित्र बनाने शुरू कर दिए थे। होशंगाबाद, भीमबेटका जैसे पाषाण कालीन स्थलों से मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं जिनमें शिकार करते हुए मानव समूह ,शिकार, स्त्रियों व पशु पक्षियों के चित्र आदि है। अजंता की गुफाओं में चित्रकारी कई शताब्दियों तक की गई। ईसापुर्व की प्रथम शताब्दी की चित्रकारी में गौतम बुध को विभिन्न रूपों में दिखाया गया है। इस चित्रकला में मानव भाव की अभिव्यक्ति मिलती है।

मूर्तियां

मूर्तियां भी प्रमुख पुरातत्व है। मोहनजोदड़ो में एक नर्तकी की मूर्ति मिली है जिससे पता चलता है कि राजा व्यापारी या अमीर व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए नृत्य कार्यक्रम कराते होंगे। महिलाओं की मूर्तियां अधिक मिलने से ज्ञात होता है कि उस समय का समाज मातृसत्तात्मक था। इस तरह मूर्ति से हमें बहुत प्रमुख जानकारियां मिलती है। कुषाण काल की मूर्तियां विदेशी शैली मे बनाई गयी। अमरावती,भारहुत, बोधगया व सांची की मूर्तिकला में जनसाधारण के जीवन की झांकी दिखाईं गई है। इन मूर्तियों का Prachin Bharat ke Shrot में महत्वपूर्ण स्थान हैं।

अवशेष

इसमें जीव धारियों व उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सामान शामिल है.  इसमें मनुष्य तथा इनके साथ रहने वाले पशु पक्षी के अवशेष शामिल है। मोहनजोदड़ो में 500 से अधिक मोहरे मिली है। गंगा यमुना दोआब में सबसे नीचे की सतह पर गेरुए  रंग के मृदभांड मिले हैं। हडप्पा से लाल चित्रित धूसर मृदभांड तथा मिट्टी के आभूषण मिले हैं।  मोहनजोदड़ो से एक कपास का कपड़े का टुकड़ा मिला है। कालीबंगा से ऊंट की हड्डी मिली है व हवन कुंड मिला है। लोथल से शतरंज के अवशेष मिले है । इन अवशेषों का Prachin Bharat ke Shrot में महत्वपूर्ण स्थान हैं।

साहित्यिक स्रोत 

साहित्यिक स्रोत तीन प्रकार के होते हैं-

  • धार्मिक साहित्य
  • अधार्मिक साहित्य
  • संगम साहित्य

धार्मिक साहित्य

इसमें निम्न ग्रन्थ आते है-

  • वेद
  • ब्राह्मण
  • आरण्यक
  • उपनिषद
  • पुराण
  • वेदांग
  • उपवेद

वेद

वेद का अर्थ नॉलेज मतलब ज्ञान होता है

वेद  चार प्रकार के हैं-

ऋग्वेद

ऋक का अर्थ होता है उच्चारण। मूल वेद Indo-European (इंडो यूरोपियन) भाषा में लिखे गए। ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 सूक्त 10462 ऋचाए है। ऋग्वेद का रचनाकाल 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व है। इसमें देवी देवताओं के मंत्र है।

यजुर्वेद

यजुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों में हैं। इसमें यज्ञ व हवनों के नियम व विधान हैं ।

सामवेद

शाम शब्द का अर्थ होता है गान। इसमें गाए जा सकने वाली ऋचाए है। इसके पाठकर्ता को उदगाता कहा जाता है। यह भारतीय संगीत का जनक है ।

अथर्ववेद

अथर्व ऋषि द्वारा रचित होने के कारण इसका नाम अथर्ववेद पड़ा । इस वेद मे  रोग निवारण, तंत्र-ंमंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, वशीकरण, प्रेमविवाह, ओषधि ,अनुसंधान व राजकर्म आदि का वर्णन है।

ब्राह्मण ग्रंथ

यह वेदों की गद्य में व्याख्या करता है ।

आरण्यक

इनका पठन पाठन वनों में किया जाता था और आरण्यक ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ तथा उपनिषदों की बीच की कड़ी है ।

उपनिषद

उपनिषद हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह संस्कृत में लिखे गए हैं। सत्य की खोज और  ब्राह्म की पहचान इन उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है।

पुराण

भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबध्द विवरण पुराणों में मिलता हैं। इसके रचियता लोमहर्ष एवं इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है।

वेदांग

  • शिक्षा
  • कल्प
  • व्याकरण
  • निरुक्त
  • छंद
  • ज्योतिष

वेदों के अर्थ को अच्छी तरह से समझने के लिए वेदांग काफी सहायक है।

उपवेद

उपवेद वेदों की शाखाएं होती है। इनकी संख्या 4 है –

  • धनुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है।
  • शिल्पवेद यजुर्वेद का उपवेद है।
  • गंधर्ववेद सामवेद का उपवेद है।
  • आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है।

षड्दर्शन

इनकी संख्या 6 संख्या है-

दर्शन रचियता
साख्य कपिल मुनि
योग पतंजलि
न्याय महर्षि गौतम
वैशेषिक महर्षि कणाद
मीमांसा जैमिनी ऋषि
वेदांत बादरायण

महाकाव्य (प्राचीन  इतिहास के  स्रोत)

महाकाव्य दो होते है-

  • महाभारत
  • रामायण

महाभारत

महाभारत -महर्षि  वेद व्यास

रामायण

रामायण – महर्षि बाल्मीकि

पुराण

आख्यान संबंधित ग्रंथ है जिनमें संसार, ऋषियों और राजाओं के वृतांत आदि है। इनमें प्राचीन शासकों की वंशावलिया है । इनकी संख्या 18 है ‌।

स्मृति

स्मृति का अर्थ होता है याद रखना या याद करना। हिंदुओं के लिए स्मृतिया वे ग्रंथ है जिनकी उत्पत्ति मनुष्य द्वारा की गई और जो श्रुति के नीचे आते हैं ।

बौद्ध धर्म का साहित्य (प्राचीन  इतिहास के  स्रोत)

बौद्ध धर्म का मुख्य ग्रंथ त्रिपिटक है। इसके तीन प्रकार है –

  • सुत्तपिटक
  • विनयपिटक
  • अभिधम्मपिटक

सुत्तपिटक

यह तीनों पिटकों में सबसे श्रेष्ठ व बड़ा है । यह बुध के धार्मिक विचारों व वचनों का संग्रह है।  इसे बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है। इनका  Prachin Bharat ke Shrot में  महत्व है। यह पांच निकायों में विभाजित है-

  • दीर्घ निकाय
  • मज्झिम निकाय
  • अंगुत्तर निकाय
  • संयुक्त निकाय
  • खुद्दक निकाय ।

जातक कथाएं जिसमें बुद्ध की पूर्व जन्म की कहानियां हैं खुद्दक निकाय का एक भाग है।

विनयपिटक – यह बौध्द संघ के नियमों से सम्बन्धित है।

अभिधम्मपिटक–  यह बौद्ध धर्म का दर्शन है। इसकी रचना मोग्गलिपुत्त तिस्स ने  तृतीय बौद्ध संगीति के समय की।  इस की कथावस्तु प्रमुख है।

बौद्ध धर्म के अन्य ग्रंथ

  • मिलिंदपन्हो
  • दीपवंश और महावंश

जैन साहित्य (प्राचीन  इतिहास के  स्रोत)

जैन साहित्य को आगम (सिद्धांत ) कहा जाता है।  इसमें है –

  • अंग –  12
  • उपांग – 12
  • प्रकीर्ण –  10
  • छंद सूत्र – 6
  • अनुयोगसूत्र
  •  नंदी सूत्र

महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद विभिन्न संगीतियों में इन नियमों को निर्धारित किया गया ।

भगवती सूत्र – इसमें 16 महाजनपदो का उल्लेख है। इसमें भगवान महावीर स्वामी की जीवनी दी गई है। इसमें जैन धर्म के सिद्धांत भी है ।

आंचारांग सूत्र – इसमें जैन भिक्षुओं द्वारा पालन किय़े जाने वाले नियमों का उल्लेख है ।

संगम साहित्य

संगम साहित्य से भी उस समय की सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक जानकारी मिलती है। इसके प्रमुख ग्रन्थ हैं –

  1. तिरूकुरल
  2. शिलप्पादिकारम्
  3. मणिमेखलै
  4. जीवक चिंतामणि

यूनान एवं रोम के लेखक

  1. हेरोडोटसः– हेरोडोटस को भारत का पिता कहा जाता है। इनकी पुस्तक का नाम हिस्टोरिका ( जो 5वीं शताब्दी ईसा पु्र्व मे लिखी गई ) है जिसमे इसने भारत और फारस के बीच के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला है। इसमे भारत का नाम इंडिया लिखा है। अफवाहों और अनुश्रुतियों पर आधारित होने के कारण यह पुस्तक अधिक विश्वसनीय नही है।
  2. टेसियसः– टेसियस ईरान का राजवैद्य था। उसने भारत के विषय मे समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी।
  3. निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा अरिस्टोबुलस – ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन थे। भारतीय प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध मे इन्होने जो लिखा है वह अधिक प्रमाणिक है।
  4. डाईमेकस – यह बिन्दुसार के दरबार मे आया था। यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था। इसका विवरण मौर्याकालीन है।
  5. डायोनिसियस – अशोक के दरबार मे आया था और मिस्र नरेश फिलाडेल्फस का राजदूत था।
  6. मेगस्थनीज – यह यूनानी राजा सेल्युकस निकेटर का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार मे लगभग 14 वर्षो तक रहा। उसनी पुस्तक का नाम इंडिका था। यह Prachin Bharat ke Shrot की प्रमुख बुक है। इस पुस्तक मे मौर्यकालीन समाज और संस्कृति का विवरण है।
  7. पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी – इस पुस्तक के लेखक के बारे मे कोई जानकारी नही है। यह लेखक लगभग 80 ई. में हिंद महासागर की यात्रा पर आया था। इसने भारत के तात्कालीन बन्दरगाहों तथा वस्तुओं के बारे में लिखा है।
  8. टॉलेमी – इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी।
  9. प्लिनी – ईसा की प्रथम शताब्दी में इसने नेचुरल हिस्टोरिका नामक पुस्तक लिखी जिसमे इसने भारतीय पशुओं, पेड़-पौधो. खनिज-पदार्थो के बारे में लिखा है।

चीनी लेखक

  1. फाहियान – यह चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज  एवं संस्कृति के बारे में लिखा है तथा मध्यप्रदेश की जनता को सुखी तथा समृध्द बताया।
  2. संयुगन – यह 518 ई. में भारत आया और 3 वर्षो तक रहा। इस समयावधि में इसने बौध्द धर्म की प्राप्तियाँ एकत्र की।
  3. ह्वेगसाँग – यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत था। ह्वेगसाँग ने 629 ई. में भारत के लिए  प्रस्थान किया और 630 ई. में भारत पहुँच गया। यह भारत में 15 वर्षो तक भारत में रहा । उसने नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और बौध्द धर्म की प्राप्तियाँ एकत्र की। इनके यात्रा वृत्तांत में 138 देशों का वर्णन मिलता है। इससे हर्षवर्धनकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में पता चलता है।
  4. इत्सिंग – यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत  आया था। इसने अपने विवरण में नालन्दा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा तात्कालीन भारत का वर्णन किया है।

अरबी लेखक

  1. अलबरुनी – यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। उसकी पुस्तक किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द से तात्कालीन भारत के बारे में प्रमाणिक जानकारी मिलती है। यह पुस्तक अरबी में लिखी हुई है।
  2. इब्न बतूता – 14वीं शताब्दी में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलग के शासनकाल में यह भारत आया था । अरबी भाषा में लिखी उसकी कृति रिहला से तात्कालीन समाज व संस्कृति की अत्यधिक प्रमाणिक जानकारी मिलती है।

अन्य लेखक (Other Writer in Prachin Bharat ke Shrot)

  1. तारानाथ – यह एक तिब्बती लेखक था। इसने कंग्युर तथा तंग्युर नामक ग्रंथ की रचना की । तात्कालीन भारत के बारे में  जानकारी मिलती है।
  2. मार्को पोलों – यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्डय देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्डय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है।

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