संस्कृत में धातु और उसके प्रकार  

Dheeraj Pandit

इस आर्टिकल में हम धातु और उसके प्रकार पर चर्चा करेंगे। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि संस्कृत में धातु क्या होती है। संस्कृत में धातु और उसके प्रकार तथा इसके वर्गीकरण (गण) के बारे में जानेंगे।

धातु की परिभाषा

क्रिया के मूल रूप को ही धातु कहा जातु जाता है। जिस शब्द से किसी काम के होने या न होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते है। धातुओं में तिङ् प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाये जाते है।

धातुओं के प्रकार

संस्कृत में धातुओं के दो प्रकार होते है जो निम्नलिखित है-

  • परस्मैपद
  • आत्मनेपद
  • उभयपदी

परस्मैपद

इस धातु में क्रिया के होने या न होने का प्रभाव स्वयं पर न होकर दुसरे के ऊपर होता है। जैसे – नम् धातु।

आत्मनेपद

– इस धातु में क्रिया के होने या न होने का प्रभाव स्वयं पर पड़ता है। जैसे – खाद् धातु।

उभयपदी

कुछ धातुओं के रूप दोनों पदों में चलते हैं। ऐसी धातुएँ उभयपदी कहलाती है।

धातुओं के गण | धातुओं का वर्गीकरण | संस्कृत में गण

संस्कृत में कुल धातुओं की संख्या 1970 है। समस्त धातुओं को 10 गण या वर्गों में बॉँटा गया है जो निम्न है-

  • भ्वातिगण – भू इत्यादि
  • अदादिगण – अद् आदि
  • जुहोत्यादिगण – हु आदि
  • दिवादिगण – दिव आदि
  • स्वादिगण – सु आदि
  • तुदीतिगण – तुद् आदि
  • रधादिगण – रूध् आदि
  • तनादिगण – तन् आदि
  • क्रयादिगण – क्री आदि
  • चुरादिगण – चुर् आदि

प्रत्येक गण की धातुओं के रूप प्राय: एक तरह से ही चलते है।

भ्वादिगण

इसका विकिरण (factor) ‘अ’ होता है। धातु तथा प्रत्यय के बीच के वर्ण को विकरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत धातुओं की कुल संख्या 1035 है। इस गण की प्रथम धातु भू है जिसका अर्थ ‘होना’ है।

  • भू + अ + ति = भवति
  • भू + अ + त: = भवत:
  • भू + अ + अन्ति = भवन्ति
धातुअर्थधातुअर्थ
भूहोनानम्नमस्कार करना
रक्ष्रक्षा करनासीद् या सद्बैठना
जिघ्र या घ्रासूँघनाश्रुसुनना
हस्हँसनास्मृयाद करना
बस्रहनापठ्पढ़ना
पच्पकानापा या पिब्पीना
जि या जयजीनासेव्सेवा करना
मद्प्रसन्न होनानीले जाना
लभ्पानासह्सहना
कम्प्काँपनावृध्बढ़ना
याचमाँगनाह्रहरना
त्यजत्यागना

अदादिगण

इस गण की धातु में धातु तथा प्रत्यय के बीच में कोई विकरण नही लगता है। इस गण की प्रथम धातु अद् है। इसलिये इस गण को अदादिगण कहते है।

  • अद् + ति = अत्ति
  • अद् + तः = अत्तः
  • अद् + अन्ति = अदन्ति

Note:- लट्, लङ्, लोट और विधिलिंग के एकवचन में इ ए’ में तथा उ ‘ओ’ में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण:-

धातुअर्थधातुअर्थ
अद्खानाअस्होना
बूबोलनादुदुहना
शीसोनारूद्ररोना
स्वयसोनाहन्मारना
आस्बैठना

जुहोत्यादिगण

इस गण की धातु में भी धातु तथा प्रत्यय के बीच में कोई विकरण नही लगता है किन्तु धातु का द्वित्व हो जाता है और गुण भी बदल जाता है। इस गण की प्रथम धातु हु है इसलिये इस गण को जुहोत्यादिगण कहते है। हु को दो बार लिखने पर हुहु हो जाता है। पहला ह ‘ज’ में बदल जायेगा और दुसरा ह कि उ की मात्रा ‘ओ’ में बदल जायेगी। तब यह जुहो में बदल जायेगा।

हु के रूप इस तरह से चलेंगे-

  • जुहोति
  • जुहुरः
  • जिहवति

भी – चलना के रूप

  • बिभेति
  • बिभीतः
  • बिभ्यति

दिवादिगण

इसमे धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘य’ लगता है। इस गण की प्रथम धातु दीव् या दिव् है इसलिए इस गण को दिवादिगण कहा जाता है।

  • दीव् – चमकना, दीव +य+ति =दीव्यति, दीव्यत:, दीव्यन्ति
  • नृत – नाचना, नृत+य+ति=नृत्यति , नृत्यतः, नृत्यन्ति
  • नश् – नाश करना, नश्+य+ति= नश्यति, नश्यतः, नश्यन्ति
  • भ्रम/भ्राम – घूमना, भ्रामयति, भ्रामयत:, भ्रामयन्ति
  • युध् – लड़ना, युध्यति, युध्यत: युध्यन्ति

स्वादिगण

इस गण की धातुओं में धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘नु’ विकरण आता है। चूँकि इस गण की प्रथम धातु ‘सु’ है, इसलिए इस गण को स्वादिगण कहा जाता है।

  • सु – सुनना, आप् – प्राप्त करना
  • सु+नु(नो)+ति=सुनोति
  • सु+नु+तः=सुनतः
  • सु+नु+अन्ति=सुनवन्ति
  • आप+नु(नो)+ति=आपनोति
  • आप+नु+तः=आपनुतः
  • आप+नु(न)+अन्ति=आपुनन्ति

तुदादिगण

इस गण की धातुओं में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘अ’ विकरण आता है। अलग सूत्र से ‘अ’ आने के कारण इसे अलग गण में रखा गया है। इस गण की प्रथम धातु तुद् है इसलिए इस गण का नाम तुदादिगण रखा गया हैे।

तुद्दुःख देनाइच्छ्इच्छा करनास्पृश्छूना
तुद्+अ+तितुदतिइच्छ्+अ+तिइच्छतिस्पृश+अ+तिस्पृशति
तुद्+अ+तःतुदतःइच्छ्+अ+तःइच्छतःस्पृश+अ+तःस्पृशतः
तुद्+अ+अन्तितुदन्तिइच्छ्+अ+अन्तिइच्छन्तिस्पृश+अ+अन्तिस्पृशन्ति

रूधातिगण

इस गण की धातुओं में धातु के प्रथम स्वर के बाद ‘न’ लगता है। धातु तथा प्रत्यय के बीच कुछ नही लगता। इस गण की प्रथम धातु रूध होने के कारण इस गण का नाम रूधातिगण रखा गया है।

  • रूध् – ढकना
  • रूध्+न+ध+ति=रून्धति
  • रूध्+न+ध+तः=रून्धतः
  • रूध्+न+ध+अन्ति=रून्धन्ति

तुनादिगण

इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘उ’ विकरण लगता है जो प्रथम पुरूष तथा एकवचन में ‘ओ’ हो जाता है। इस गण की प्रथम धातु तन है इसलिये इस गण को तनादिगण कहा जाता है।

तन्फैलानाकृकरना
तन्+उ(ओ)+तितनोतिकृ+उ(ओ)+तिकरोति
तन्+उ+तःतनुतःकृ+उ+तःकरुतः
तन्+उ+न्तितनुन्तिकृ+उ+न्तिकरुवन्ति

क्रयादिगण

इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘ना’ विकरण आता है जो स्थानुसार नी या न् में बदल जाता है। इस गण की प्रथम धातु क्रय होने के कारण इस गण को क्रयादिगण कहा जाता है।

क्रीखरीदनागृह्पकड़नाज्ञाजानना
क्री+ना(न)+तिक्रीणतिगृह्+ना(न)+तिगृह्णतिज्ञा+ना+तिजानाति
क्री+ना(नी)+तःक्रीणीतःगृह्+ना(न)+तिगृह्णीतज्ञा+ना+तिजानातः
क्री+ना(न)+न्तिक्रीणन्तिगृह्+ना(न)+तिगृह्णन्तिज्ञा+ना+तिजानान्ति

चुरातिगण

इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘अय’ विकरण आता है। इस गण की प्रथम धातु चुर होने के कारण इस गण को चुरादिगण कहा जाता है। रूप बनाते समय उपधा (प्रथम स्वर) में गुण, दीर्ध , वृध्दि आदि सन्धिगत परिवर्तन होते है।

चुर्चुरानाचिन्त्चिन्ता करनाकथ्कहनाभक्ष्खाना
चुर्+अय+तिचोरयतिचिन्त्+अय+तिचिन्यतिकथ्+अय+तिकथयतिभक्ष्+अय+तिभक्षयति
चुर्+अय+तःचोरयतःचिन्त्+अय+तःचिन्यतःकथ्+अय+तःकथयतःभक्ष्+अय+तःभक्षियतः
चुर्+अय+न्तिचोरयन्तिचिन्त्+अय+न्तिचिन्यन्तिकथ्+अय+न्तिकथयन्तिभक्ष्+अय+न्तिभक्षयन्ति

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