इस आर्टिकल में हम धातु और उसके प्रकार पर चर्चा करेंगे। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि संस्कृत में धातु क्या होती है। संस्कृत में धातु और उसके प्रकार तथा इसके वर्गीकरण (गण) के बारे में जानेंगे।
धातु की परिभाषा
क्रिया के मूल रूप को ही धातु कहा जातु जाता है। जिस शब्द से किसी काम के होने या न होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते है। धातुओं में तिङ् प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाये जाते है।
धातुओं के प्रकार
संस्कृत में धातुओं के दो प्रकार होते है जो निम्नलिखित है-
- परस्मैपद
- आत्मनेपद
- उभयपदी
परस्मैपद
इस धातु में क्रिया के होने या न होने का प्रभाव स्वयं पर न होकर दुसरे के ऊपर होता है। जैसे – नम् धातु।
आत्मनेपद
– इस धातु में क्रिया के होने या न होने का प्रभाव स्वयं पर पड़ता है। जैसे – खाद् धातु।
उभयपदी
कुछ धातुओं के रूप दोनों पदों में चलते हैं। ऐसी धातुएँ उभयपदी कहलाती है।
धातुओं के गण | धातुओं का वर्गीकरण | संस्कृत में गण
संस्कृत में कुल धातुओं की संख्या 1970 है। समस्त धातुओं को 10 गण या वर्गों में बॉँटा गया है जो निम्न है-
- भ्वातिगण – भू इत्यादि
- अदादिगण – अद् आदि
- जुहोत्यादिगण – हु आदि
- दिवादिगण – दिव आदि
- स्वादिगण – सु आदि
- तुदीतिगण – तुद् आदि
- रधादिगण – रूध् आदि
- तनादिगण – तन् आदि
- क्रयादिगण – क्री आदि
- चुरादिगण – चुर् आदि
प्रत्येक गण की धातुओं के रूप प्राय: एक तरह से ही चलते है।
भ्वादिगण
इसका विकिरण (factor) ‘अ’ होता है। धातु तथा प्रत्यय के बीच के वर्ण को विकरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत धातुओं की कुल संख्या 1035 है। इस गण की प्रथम धातु भू है जिसका अर्थ ‘होना’ है।
- भू + अ + ति = भवति
- भू + अ + त: = भवत:
- भू + अ + अन्ति = भवन्ति
धातु | अर्थ | धातु | अर्थ |
भू | होना | नम् | नमस्कार करना |
रक्ष् | रक्षा करना | सीद् या सद् | बैठना |
जिघ्र या घ्रा | सूँघना | श्रु | सुनना |
हस् | हँसना | स्मृ | याद करना |
बस् | रहना | पठ् | पढ़ना |
पच् | पकाना | पा या पिब् | पीना |
जि या जय | जीना | सेव् | सेवा करना |
मद् | प्रसन्न होना | नी | ले जाना |
लभ् | पाना | सह् | सहना |
कम्प् | काँपना | वृध् | बढ़ना |
याच | माँगना | ह्र | हरना |
त्यज | त्यागना |
अदादिगण
इस गण की धातु में धातु तथा प्रत्यय के बीच में कोई विकरण नही लगता है। इस गण की प्रथम धातु अद् है। इसलिये इस गण को अदादिगण कहते है।
- अद् + ति = अत्ति
- अद् + तः = अत्तः
- अद् + अन्ति = अदन्ति
Note:- लट्, लङ्, लोट और विधिलिंग के एकवचन में इ ए’ में तथा उ ‘ओ’ में परिवर्तित हो जाता है।
उदाहरण:-
धातु | अर्थ | धातु | अर्थ |
अद् | खाना | अस् | होना |
बू | बोलना | दु | दुहना |
शी | सोना | रूद्र | रोना |
स्वय | सोना | हन् | मारना |
आस् | बैठना |
जुहोत्यादिगण
इस गण की धातु में भी धातु तथा प्रत्यय के बीच में कोई विकरण नही लगता है किन्तु धातु का द्वित्व हो जाता है और गुण भी बदल जाता है। इस गण की प्रथम धातु हु है इसलिये इस गण को जुहोत्यादिगण कहते है। हु को दो बार लिखने पर हुहु हो जाता है। पहला ह ‘ज’ में बदल जायेगा और दुसरा ह कि उ की मात्रा ‘ओ’ में बदल जायेगी। तब यह जुहो में बदल जायेगा।
हु के रूप इस तरह से चलेंगे-
- जुहोति
- जुहुरः
- जिहवति
भी – चलना के रूप
- बिभेति
- बिभीतः
- बिभ्यति
दिवादिगण
इसमे धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘य’ लगता है। इस गण की प्रथम धातु दीव् या दिव् है इसलिए इस गण को दिवादिगण कहा जाता है।
- दीव् – चमकना, दीव +य+ति =दीव्यति, दीव्यत:, दीव्यन्ति
- नृत – नाचना, नृत+य+ति=नृत्यति , नृत्यतः, नृत्यन्ति
- नश् – नाश करना, नश्+य+ति= नश्यति, नश्यतः, नश्यन्ति
- भ्रम/भ्राम – घूमना, भ्रामयति, भ्रामयत:, भ्रामयन्ति
- युध् – लड़ना, युध्यति, युध्यत: युध्यन्ति
स्वादिगण
इस गण की धातुओं में धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘नु’ विकरण आता है। चूँकि इस गण की प्रथम धातु ‘सु’ है, इसलिए इस गण को स्वादिगण कहा जाता है।
- सु – सुनना, आप् – प्राप्त करना
- सु+नु(नो)+ति=सुनोति
- सु+नु+तः=सुनतः
- सु+नु+अन्ति=सुनवन्ति
- आप+नु(नो)+ति=आपनोति
- आप+नु+तः=आपनुतः
- आप+नु(न)+अन्ति=आपुनन्ति
तुदादिगण
इस गण की धातुओं में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘अ’ विकरण आता है। अलग सूत्र से ‘अ’ आने के कारण इसे अलग गण में रखा गया है। इस गण की प्रथम धातु तुद् है इसलिए इस गण का नाम तुदादिगण रखा गया हैे।
तुद् | दुःख देना | इच्छ् | इच्छा करना | स्पृश् | छूना |
तुद्+अ+ति | तुदति | इच्छ्+अ+ति | इच्छति | स्पृश+अ+ति | स्पृशति |
तुद्+अ+तः | तुदतः | इच्छ्+अ+तः | इच्छतः | स्पृश+अ+तः | स्पृशतः |
तुद्+अ+अन्ति | तुदन्ति | इच्छ्+अ+अन्ति | इच्छन्ति | स्पृश+अ+अन्ति | स्पृशन्ति |
रूधातिगण
इस गण की धातुओं में धातु के प्रथम स्वर के बाद ‘न’ लगता है। धातु तथा प्रत्यय के बीच कुछ नही लगता। इस गण की प्रथम धातु रूध होने के कारण इस गण का नाम रूधातिगण रखा गया है।
- रूध् – ढकना
- रूध्+न+ध+ति=रून्धति
- रूध्+न+ध+तः=रून्धतः
- रूध्+न+ध+अन्ति=रून्धन्ति
तुनादिगण
इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच ‘उ’ विकरण लगता है जो प्रथम पुरूष तथा एकवचन में ‘ओ’ हो जाता है। इस गण की प्रथम धातु तन है इसलिये इस गण को तनादिगण कहा जाता है।
तन् | फैलाना | कृ | करना |
तन्+उ(ओ)+ति | तनोति | कृ+उ(ओ)+ति | करोति |
तन्+उ+तः | तनुतः | कृ+उ+तः | करुतः |
तन्+उ+न्ति | तनुन्ति | कृ+उ+न्ति | करुवन्ति |
क्रयादिगण
इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘ना’ विकरण आता है जो स्थानुसार नी या न् में बदल जाता है। इस गण की प्रथम धातु क्रय होने के कारण इस गण को क्रयादिगण कहा जाता है।
क्री | खरीदना | गृह् | पकड़ना | ज्ञा | जानना |
क्री+ना(न)+ति | क्रीणति | गृह्+ना(न)+ति | गृह्णति | ज्ञा+ना+ति | जानाति |
क्री+ना(नी)+तः | क्रीणीतः | गृह्+ना(न)+ति | गृह्णीत | ज्ञा+ना+ति | जानातः |
क्री+ना(न)+न्ति | क्रीणन्ति | गृह्+ना(न)+ति | गृह्णन्ति | ज्ञा+ना+ति | जानान्ति |
चुरातिगण
इस गण में धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘अय’ विकरण आता है। इस गण की प्रथम धातु चुर होने के कारण इस गण को चुरादिगण कहा जाता है। रूप बनाते समय उपधा (प्रथम स्वर) में गुण, दीर्ध , वृध्दि आदि सन्धिगत परिवर्तन होते है।
चुर् | चुराना | चिन्त् | चिन्ता करना | कथ् | कहना | भक्ष् | खाना |
चुर्+अय+ति | चोरयति | चिन्त्+अय+ति | चिन्यति | कथ्+अय+ति | कथयति | भक्ष्+अय+ति | भक्षयति |
चुर्+अय+तः | चोरयतः | चिन्त्+अय+तः | चिन्यतः | कथ्+अय+तः | कथयतः | भक्ष्+अय+तः | भक्षियतः |
चुर्+अय+न्ति | चोरयन्ति | चिन्त्+अय+न्ति | चिन्यन्ति | कथ्+अय+न्ति | कथयन्ति | भक्ष्+अय+न्ति | भक्षयन्ति |
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